यूपी के कारोबारी दो साल से निराश, अब त्योहारों से है आस
लगातार दो साल कोरोना संकट में महीनों का लॉकडाउन हुआ, मांग चौपट हो गई और अब महंगाई का हथौड़ा चल गया है, जिससे उत्तर प्रदेश के कारोबारी हलाकान हैं। अब कारोबारियों को अक्टूबर में शुरू हो रहे त्योहारी सीजन और सहालग से ही धंधा सुधरने की आस है। उनका कहना है कि पिछले साल त्योहार और सहालग पूरी तरह फीके रहे, लेकिन इस साल प्रदेश से कोरोना का असर खत्म होते देखकर बहुत आस बंध गई है। अभी तो हालत यह है कि लखनऊ का चिकन हो या वाराणसी का सिल्क, मुरादाबाद का पीतल हो या कन्नौज का इत्र, सभी के सामने धंधे में बने रहने का संकट है। विदेश से मिलने वाले ऑर्डरों में भारी गिरावट आयी है और देसी बाजारों में भी माल की मांग खासी घटी है। सबसे बड़ा संकट यह है कि कच्चा माल महंगा होने के बाद भी दाम पुराने स्तर पर रखने पड़ रहे हैं। कारोबारियों का कहना है कि इन हालात में तैयार माल मंहगा है और दाम नहीं बढ़े तो धंधा बचाना मुश्किल हो जाएगा। उनका यह भी कहा है कि फिलहाल अपने मुनाफे पर चोट खाकर धंधा बचाने की मशक्कत हो रही है।
चिकनकारी पर दोहरी मार
सालाना 2,000 करोड़ रुपये कारोबार वाला चिकनकारी का धंधा सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इस धंधे पर कोरोना महामारी की सबसे ज्यादा मार पड़ी थी। चिकन का धंधा गर्मी के मौसम में शबाब पर होता है और पिछले दो साल से उसी मौसम में लॉकडाउन लगता आ रहा है। होली से लेकर बारिश के मौसम तक चिकन के कपड़ों की मांग सबसे ज्यादा रहती है और ईद का त्योहार भी इन्हीं दिनों पड़ता है, जब चिकन का धंधा एकदम चरम पर पहुंच जाता है।
लखनऊ के प्रमुख चिकन कारोबारी और निर्यातक अजय खन्ना बताते हैं कि पिछले साल होली के बाद से बाजार की दशा जो बिगड़ी तो आज तक संभल नहीं पाई है। इस साल जनवरी-फरवरी में बाजार पूरी तरह खुले थे तो धंधा पटरी पर आता दिख अपने मुनाफे को कैसे बढ़ाएं रहा था मगर अप्रैल आते-आते फिर वही हाल हो गया। उनका कहना है कि दो साल से कच्चे माल की कीमत लगातार बढ़ती गई है मगर मांग इतनी कम हुई है कि कारोबारी दाम बढ़ा ही नहीं पा रहे हैं। बाहर के कारोबारी तो माल का पुराना दाम लगाने को भी राजी नहीं हैं ऐसे में दाम बढ़ाने की बात कौन कहे।
लखनऊ में ही चिकन कारोबार करने वाले अरुण तनेजा कहते हैं कि इस समय कारोबारी अपना मुनाफा कटाकर ही धंधे में बना हुआ है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में दौरान लगातार दो साल धंधा घटा तो बहुत से कारीगर भाग गए और दूसरे काम में लग गए। बाजार खुलने पर अब कुछ मांग आ रही है मगर उनमें से ज्यादतर कारीगर वापस आने को तैयार नहीं हैं। तनेजा बताते हैं कि बहुत से छोटे कारोबारियों ने तो धंधा तक समेट लिया है या रेडीमेड कपड़े बेचने लगे हैं।
रेशम के धंधे में लगा घुन
बीते कई सालों से सूरत के हाथों धंधा खोते जा रहे वाराणसी के सिल्क उद्योग के लिए कोरोना और महंगाई काल बनकर आई है। इस बार कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सिल्क कारोबारियों ने खुद ही बाजार बंद करने का फैसला किया था। वाराणसी के एक प्रमुख सिल्क निर्यातक अपने मुनाफे को कैसे बढ़ाएं का कहना है कि ऐसा सेहत की फिक्र में नहीं किया गया बल्कि बाजार इसलिए बंद हुए थे कि न तो धंधा रह गया था और न ही लागत निकल पा रही थी। दो साल से विदेशी मांग न के बराबर है और देसी बाजारों की चमक गायब है। सहालग फीका जा रहा है। उसके बाद भी कच्चे माल की कीमत ऊंची बनी हुई है। माल भाड़ा भी बढ़ गया है। ऐसे में माल महंगा तो क्या बेचें पुरानी कीमत पर माल निकालना भी मुश्किल हो रहा है।
सिल्क निर्यातक रजत पाठक का कहना है कि ज्यादातर लोग अनिश्चितता के इस दौर में पैसा अपनी मुट्ठी में दबाकर चल रहे हैं। कोई अब उधारी पर धंधा करना नहीं चाहता है और न ही ज्यादा कच्चा माल उठा कर पैसा फंसाना चाहता है। उनके मुताबिक धंधा करीब 40 फीसदी घट गया है और उसमें सुधार की गुंजाइश भी नहीं दिख रही है। इस बार तो आलम यह था कि बनारसी साडिय़ां बेचने वालों ने सहालग के दिनों में भी सूरत से मंगाया पावरलूम का माल बेचा। इसका बड़ा कारण यही है कि बनारसी सिल्क महंगा है और ग्राहक जेब ज्यादा ढीली नहीं करना चाहता।
उडऩे लगी कन्नौज के इत्र की खुशबू
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में कन्नौज के मशहूर इत्र का धंधा चमकाने के लिए म्यूजियम और पार्क बनाने का ऐलान किया है। फिर भी इत्र कारोबारियों के चेहरे पर रौनक नहीं दिखती। गुलाब, खस, चमेली और कई तरह के नायाब इत्रों के लिए मशहूर कन्नौज के कारोबारियों के पास काम नहीं के बराबर है और कारीगरों का भी टोटा हो गया है। अपने मुनाफे को कैसे बढ़ाएं एक कारोबारी का कहना है कि अभी लोगों के पास पैसा ही नहीं है तो इत्र कौन खरीदेगा। विदेश से आने वाले ऑर्डर भी पिछले साल से बंद हैं। मुंबई और दिल्ली के बाजारों से मांग नहीं के बराबर है। स्थानीय बाजारों में कन्नौज के इत्र के दाम देने वाले ही नहीं मिल पाते।
इत्र कारोबारियों का कहना है कि सबसे ज्यादा मार तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढऩे से पड़ी है। यहां का ज्यादातर माल बाहर से आता है और तैयार होकर जाता है। दोनों सूरत में ढुलाई पर डीजल महंगा होने का असर पड़ता है। फिर भी कारोबारी दाम बढ़ाने की सोच नहीं सकते और अपने मुनाफे पर ही चाकू झेल रहे हैं। इत्र कारोबारी राजीव दीक्षित कहते हैं कि पहले यहां हर साल 1,200 करोड़ रुपये से ज्यादा का धंधा होता था और अब 500 करोड़ रुपये का काम भी नहीं बचा है।
रेवड़ी, गजक पर भी मंदी
अकेले लखनऊ से हर साल गर्मियों में 300 करोड़ रुपये की सुगंधित रेवड़ी का काम होता था, जो दो साल से चौपट है। गर्मियों में लॉकडाउन रहा और बरसात का मौसम आते-आते मांग ही नहीं रही। लखनवी रेवड़ी के थोक विक्रेता राजेश मिश्रा कहते हैं कि इस धंधे में मात्रा भले छोटी है मगर इसके उत्पाद से लेकर बिक्री तक हजारों लोग जुड़े हैं, जो प्रभावित हुए हैं। चीनी के दाम बढ़े, मजदूरी बढ़ी और माल भेजने का खर्च भी बढ़ गया मगर रेवड़ी की कीमत जस की तस रही है। मिश्रा कहते हैं कि कुल मिलाकर रेवड़ी कारोबारी इस समय घाटा उठाकर ही धंधा कर रहे हैं मगर ऐसा लंबे अरसे तक नहीं चल पाएगा। गजक की मांग यूं तो जाड़ों में ज्यादा रहती है मगर इसके उत्पादन की तैयारी बरसात से ही शुरू हो जाती है। मिश्रा बताते हैं कि जिस तरह भाड़ा बढ़ा है और कच्चा माल मंहगा हुआ है, उससे समझ में नहीं आ रहा है कि बिना दाम बढ़ाए कैसे काम चलेगा। कच्चे माल की कीमत 20 फीसदी और भाड़ा 10 से 12 फीसदी बढ़ा है, जो कारोबारियों पर बहुत भारी पड़ रहा है।
मांग बढ़े बिना गुजारा नहीं
उत्तर प्रदेश के उद्यमियों का कहना है कि राहत का कोई भी पैकेज तब तक नाकाफी ही रहेगा, जब तक बाजार में मांग नहीं बढ़ती है। उनका यह भी कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दामों में कटौती बहुत जरुरी है। उद्योग भारती के सचिव डॉ अजय का कहना है कि नकदी की समस्या ग्राहक के पास भी है और उत्पादक के पास भी। संकट के इस दौर में हर किसी ने अपना हाथ सिकोड़ लिया है और केवल जरुरी खर्च ही किए जा रहे हैं। माल भाड़ा इस कदर बढ़ता जा रहा है कि लागत का गणित हर रोज बिगड़ जाता है तो कारोबारी मूल्य का निर्धारण कैसे करे। सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा। बाजार कब तक खुले रहेंगे और कब दोबारा बंद हो जाएंगे, यह भी अनिश्चित है। इन हालात में कारोबारी किसी दीर्घकालिक योजना पर अमल भी नहीं कर रहे हैं।
हालांकि व्यापार मंडल के पदाधिकारी अब प्रदेश में कोरोना के कम हो रहे मामलों और आने वाले त्योहारों से उम्मीद संजो रहे हैं। उनका कहना है कि आज प्रदेश के डेढ़ दर्जन जिलों में कोरोना का एक भी मामला नहीं है और दो-तिहाई से ज्यादा जिलों में एक भी नया मामला नहीं आ रहा है। प्रदेश सरकार ने बंदी अब केवल रविवार तक सीमित कर दी है, जिससे आने वाले दिनों में बाजार सुधरने की उम्मीद बढ़ गई है।
Finance Formula: Share Market से कैसे होगी कमाई? मुनाफा कमाने के लिए करें कुछ ऐसा
Investment Tips: शेयर मार्केट में उतार-चढ़ाव बना रहता है. कभी कोई स्टॉक ऊपर की ओर जाता है तो कभी कोई शेयर नीचे की ओर जाता है. ऐसे में लोगों के मन में ये सवाल हमेशा रहता है कि आखिर कैसे शेयर बाजार में मुनाफा कमाएं.
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Stock Market: शेयर मार्केट में लोग पैसा कमाने के इरादे से आते हैं. हालांकि ये इरादा हर किसी का पूरा नहीं हो पाता है. लोग शेयर मार्केट (Share Market) में पैसा कमाने के इरादे से आते जरूर हैं लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं जो पैसा कमाने की बजाय पैसा गंवाकर जाते हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये आता है कि आखिर शेयर मार्केट से पैसा कैसे कमा सकते हैं. स्टॉक मार्केट एक्सपर्ट कुंदन किशोर ने इसी बारे में विस्तार से बताया है कि आखिर कैसे शेयर मार्केट से पैसा कमा सकते हैं? साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि निवेश के वक्त कैसी कंपनियों का चुनाव करना चाहिए.
बचाने की जगह है शेयर मार्केट
कुंदन किशोर का कहना है कि शेयर मार्केट में कभी भी कमाने के इरादे से नहीं आना चाहिए बल्कि शेयर मार्केट में बचाने के इरादे से आना चाहिए. शेयर मार्केट वो जगह हैं जहां निवेश कर सकते हैं और लंबे अपने मुनाफे को कैसे बढ़ाएं समय के लिए निवेश करना फायदेमंद रहता है.
मानसिकता बदलनी होगी
कुंदन किशोर के मुताबिक जिस तरह से लोग गोल्ड में, एफडी/आरडी में या प्रॉपर्टी में पैसा लगाते हैं और ये कहते हैं कि हमने पैसा बचाया है उसी मानसिकता के साथ लोगों को शेयर मार्केट में पैसा लगाना होगा. लोगों को तुरंत मुनाफे वाली मानसिकता से बचना होगा.
किन कंपनियों को चुनें?
कुंदन किशोर ने बताया कि ऐसी कंपनियों के शेयर का चुनाव करना चाहिए जो कंपनियां लगातार मुनाफा कमा रही हैं. ऐसी कंपनियों के शेयर में लंबे वक्त तक बने रहने से निवेश को कई गुना बढ़ाया जा सकता है.
(डिस्कलेमर : किसी भी तरह का निवेश करने से पहले एक्सपर्ट से जानकारी कर लें. जी न्यूज किसी भी तरह के निवेश के लिए आपको सलाह नहीं देता.)
विनियोग खाता क्या है?
विनियोग धन आवंटित करने की प्रक्रिया है, विशेष रूप से व्यवसाय द्वारा उत्पन्न लाभ aवित्तीय वर्ष. इस पैसे को विभिन्न उद्देश्यों के लिए अलग रखा जाता है, जैसे कि व्यापार विस्तार, भविष्य के निवेश, प्राकृतिक आपदाएं, और इसी तरह। विनियोग खाते के अर्थ के अनुसार, यह सरकारी फर्मों और व्यवसायों दोनों के लिए बनाया गया है।
वाणिज्यिक संपत्ति के लिए, विनियोग खाते से लाभ के विभाजन और विभिन्न क्षेत्रों में धन के आवंटन का पता चलता है। सरकार के लिए, विनियोग खाते का उपयोग विभिन्न विभागों को जमा की गई कुल धनराशि का सुझाव देने के लिए किया जाता है। प्रत्येक कंपनी को अपने मुनाफे का कम से कम कुछ हिस्सा भविष्य की घटनाओं के लिए आवंटित करना होता है, ताकि उनके पास व्यवसाय संचालन के वित्तपोषण के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध हो।
एक विनियोग खाता वित्तीय का एक महत्वपूर्ण घटक हैलेखांकन. खाता सभी प्रकार की सीमित देयता कंपनियों के साथ-साथ साझेदारी फर्मों द्वारा बनाया गया है। इसे पी एंड एल खाते के विस्तार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कंपनी के लिए धन के आवंटन का सुझाव देता हैशेयरधारकों, कार्यकारी और अन्य सदस्य। इसका उपयोग यह दिखाने के लिए भी किया जाता है कि किसी कंपनी के कुल भंडार को बढ़ाने के लिए धन का उपयोग कैसे किया जाता है।
व्यवसाय विभिन्न मौद्रिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अतिरिक्त लाभ को उपयुक्त बनाते हैं। उदाहरण के लिए, वे वित्तीय वर्ष के लिए अपने मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा ब्रांड के विकास के लिए आवंटित कर सकते हैं। यदि कंपनी के पास कोई विकास योजना नहीं है, तो वे इन निधियों का उपयोग भंडार के लिए कर सकते हैं। आमतौर पर, लाभ का उपयोग दीर्घकालिक और अल्पकालिक व्यवसाय के वित्तपोषण के लिए किया जाता हैराजधानी आवश्यकताओं, जैसे कि कर्मचारियों का वेतन और वेतन या लाभांश। विनियोजित राशि का उपयोग ऋणों के वित्तपोषण और व्यवसाय की कार्यशील पूंजी के लिए भी किया जा सकता है।
विनियोग खाता बनाना
जो लोग एक साझेदारी फर्म चला रहे हैं, वे विनियोग खाते का उपयोग यह दिखाने के लिए करते हैं कि उन्होंने संगठन के विभिन्न भागीदारों के बीच मुनाफे को कैसे विभाजित किया है। वे लाभ को या तो प्रत्येक भागीदार के बीच समान रूप से साझा कर सकते थे या भागीदारों के पूंजी अनुपात के अनुसार इसे साझा कर सकते थे। सीमित देयता कंपनियां भी विनियोग खातों का उपयोग करती हैं। एलएलसी के लिए, विनियोग खाते कंपनी को भुगतान करने से पहले प्राप्त लाभ दिखाते हैंकरों. लेखाकारों को तब कॉर्पोरेट करों के साथ-साथ लाभांश को मुनाफे से घटाना चाहिए ताकि बरकरार मुनाफे का पता लगाया जा सके।
व्यवसायों और अन्य फर्मों की तरह, सरकार को भी अपना बजट प्रस्तावित करते समय विनियोग खाते बनाने होते हैं। अमेरिकी कांग्रेस सरकार द्वारा भेजे गए विनियोग बिलों की समीक्षा करती है और फिर आवंटित राशि को विभिन्न विभागों में विभाजित करती है। विनियोग खाता विभिन्न क्षेत्रों से अनुमानित राजस्व को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, सरकार कर का अनुमान लगाती हैआय और व्यापार से होने वाली आय को वित्तीय वर्ष के लिए उत्पन्न होने वाले राजस्व का अनुमान प्राप्त करने के लिए।
करों और व्यापार से होने वाले लाभ की गणना के बाद, अमेरिकी कांग्रेस विभिन्न विभागों को धन आवंटित करती है, जिसमें कृषि विभाग, परिवहन, और बहुत कुछ शामिल है। विनियोग खातों में लाभ जिनका उपयोग वर्ष के लिए नहीं किया गया है, उन्हें अन्य उद्देश्यों के लिए पुन: आवंटित किया जा सकता है। अमेरिका में, वित्तीय वर्ष 1 अक्टूबर से शुरू होता है और 30 सितंबर तक चलता है।
एक बार शेयर खरीदकर 2 तरह से पा सकते हैं मुनाफा, जानें क्या होता अपने मुनाफे को कैसे बढ़ाएं है डिविडेंड
एक बार शेयर खरीदकर 2 तरह से पा सकते हैं मुनाफा
Dividend Stocks: अमूमन शेयर खरीदने के बाद अगर उसमें ग्रोथ आती है तो उसका फायदा निवेशकों को मिलता है. लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि एक ही जगह निवेश करें और उस पर 2 तरह से आपको मुनाफा हो. बहुत से लोगों को इस बारे में ज्यादा अंदाजा नहीं होगा. शेयर बाजार में यह भी संभव है. इस तरह का फायदा आप ज्यादा डिविडेंड देने वाले शेयरों में निवेश कर उठा सकते हैं.
शेयर बाजार की चाल हर समय एक जैसी नहीं रहती है. बाजार में कभी तेजी आती है तो कभी छोटे सेंटीमेंट से भी बाजार नीचे आने लगता है. जब बाजार में गिरावट शुरू होती है तो कई शेयरों का भाव भी गिरने लगता है और निवेशकों का रिटर्न निगेटिव हो सकता है. ऐसे में निवेशकों के मन में डर भी बैठने लगता है. जो निवेशक ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते हैं, कई बार वे इस कंडीशन में शेयर भी बेचने लगते हैं. अगर आप भी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं तो डिविडेंड स्टॉक बेहतर विकल्प है.
क्या है डिविडेंड?
कुछ कंपनियां अपने शेयरधारकों को समय-समय पर अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा देती रहती हैं. मुनाफे का यह हिस्सा वे शेयरधारकों को डिविडेंड के रूप में देती हैं. इन्हें डिविडेंड यील्ड स्टॉक भी कहते हैं. गर इन कंपनियों के शेयर खरीदते हैं तो इसमें 2 तरह से फायदा होगा.
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Dividend Stocks: 2 तरह से फायदा
- एक तो फायदा यह होगा कि कंपनी होने वाले मुनाफे का कुछ हिस्सा आपको देगी.
- दूसरी ओर शेयर में तेजी आने से भी आपको मुनाफा होगा. मसलन किसी कंपनी के शेयर में आपने 10 हजार रुपए निवेश किए हैं और एक साल में शेयर की कीमत 25 फीसदी चढ़ती है तो आपका निवेश एक साल में बढ़कर 12500 रुपये हो जाएगा.
- ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियों में निवेश का एक फायदा यह है कि आप अपने शेयर बेचे बिना भी इनकम कर सकते हैं.
मुनाफे वाली कंपनियां देती हैं डिविडेंड
आमतौर पर पीएसयू कंपनियां डिविडेंड के लिहाज से अच्छी मानी जाती हैं. जानकारों का कहना है कि अगर कोई कंपनी डिविडेंड दे रही है तो इसका मतलब साफ है कि उस कंपनी को मुनाफा आ रहा है. कंपनी के पास कैश की कमी नहीं है. डिविडेंड देने के ऐलान से शेयर को लेकर भी सेंटीमेंट अच्छा होता है और उसमें तेजी आती है. हालांकि ऐसे शेयर चुनते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि निवेश उसी कंपनी में करें जिनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर ग्रोथ के साथ रेग्युलर डिविडेंड देने का हो.
ये कंपनियां देती है डिविडेंड
देश में ऐसी कंपनियों की कमी नहीं हैं, जो अपने शेयरधारकों को समय-समय पर डिविडेंड देती हैं. ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियों की सूची में कोल इंडिया, वेदांता लिमिटेड, बीपीसीएल, आईओसी, आरईसी, NMDC, NTPC और सोनाटा सॉफ्टवेयर जैसी कंपनियां शामिल हैं.
(Disclaimer: हम यहां निवेश की सलाह नहीं दे रहे हैं. यह डिविडेंड स्टॉक के बारे में एक जानकारी है. स्टॉक मार्केट के अपने जोखिम है. निवेश के पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.)
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