फ़्यूचर्स और ऑप्शन्स के बीच अंतर

फ़्यूचर्स और ऑप्शंस बायर और सेलर के बीच, भविष्य में, पहले से तय मूल्य पर, स्टॉक एसेट के व्यापार के लिए साइंड कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं। इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट्स, पहले से ही तय मूल्य को लॉक करके, स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग में शामिल बाजार रिस्क्स को हेज करने की कोशिश करते हैं।

शेयर बाजार में फ़्यूचर्स और ऑप्शंस ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स हैं जो एक अंडरलाइंग एसेट से अपनी कीमत प्राप्त (डीराइव) करते हैं, जैसे शेयर, स्टॉक मार्केट इंडेक्स, कमोडिटी, ईटीएफ, और बहुत कुछ ।

डीराइवड वैल्यू क्या है ? सरल भाषा में बोला जाये तो किसी एसेट के वज़ह से मिलने वाला कीमत को डीराइवड वैल्यू कहा जा सकता है।

फ़्यूचर्स और ऑप्शंस – इनके बीच में क्या अंतर हैं ?

फ्यूचर एंड ऑप्शंस के बीच अंतर, दायित्वों (ओब्लिगेशंस), रिस्क, एडवांस पेमेंट और कॉन्ट्रैक्ट एक्सेक्यूशन कब किया जा सकता है, इन सब पर केंद्रित है ।

दायित्वों (ओब्लिगेशंस)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट दो पक्षों के बीच भविष्य में एक निश्चित समय पर एक निश्चित कीमत पर संपत्ति खरीदने या बेचने का एक समझौता है। यहां, खरीदार पहले से तय की गयी भविष्य की तारीख पर संपत्ति खरीदने के लिए बाध्य (ओबलाईज) है।

एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट खरीदार को एक निश्चित कीमत पर संपत्ति खरीदने का अधिकार देता है। हालांकि, खरीदने के लिए खरीदार की ओर से कोई दायित्व (ऑब्लिगेशन) नहीं है। मगर फिर भी, अगर खरीदार संपत्ति खरीदना चाहे, तो विक्रेता इसे बेचने के लिए बाध्य है।

जोखिम (रिस्क)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट होल्डर भविष्य की तारीख में खरीदने के लिए बाध्य है, भले ही उनके लिए ये घाटे का सौदा हो। मान लीजिए कि एसेट का बाजार मूल्य कॉन्ट्रैक्ट में लिखा मूल्य से नीचे आता है। खरीदार को फिर भी इसे पहले से एग्रीड कीमत पर खरीदना होगा और नुकसान उठाना होगा।

एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार को यहां एक फायदा है। यदि एसेट वैल्यू सहमत (अग्रीड) मूल्य से कम हो जाता है, तो खरीदार इसे खरीदने से मना कर सकता है। यह खरीदार के नुकसान को सीमित या कम करता है।

दूसरे शब्दों में, एक फ्यूचरस कॉन्ट्रैक्ट अनलिमिटेड लाभ या हानि ला सकता है। इस बीच, एक ऑप्शंस फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर कॉन्ट्रैक्ट अनलिमिटेड लाभ ला सकता है, लेकिन यह संभावित (पोटेंशियल) नुकसान को कम करता है।

एडवांस पेमेंट:

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करते समय कोई एडवांस पेमेंट नहीं देना होता है। लेकिन खरीदार असेस्ट्स के लिए सहमत कीमत एग्रीड प्राइस देने के लिए बाध्य है।

एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार को प्रीमियम अमाउंट खरीदना पड़ता है। इस प्रीमियम अमाउंट का पेमेंट ऑप्शंस खरीदार को भविष्य की तारीख में संपत्ति को कम आकर्षक होने पर नहीं खरीदने का विशेषाधिकार देता है। यदि ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट होल्डर संपत्ति को नहीं खरीदना चाहता है, तो उसे, पे किये गए प्रीमियम अमाउंट का नुकसान होता है।

दोनों ही मामलों में, आपको कुछ कमीशन फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर पे करना पड़ सकता है।

कॉन्ट्रैक्ट एक्सीक्यूशन:

एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट, कॉन्ट्रैक्ट में दिए गए अग्रीड डेट पर एक्सेक्यूट किया जाता है। इस डेट पर, खरीदार अंडरलाइंग एसेट खरीदता है।

हालांकि, एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार एक्सपायरी डेट से पहले कॉन्ट्रैक्ट एक्सेक्यूटे कर सकता है। और जब भी उसे लगता है कि परिस्थितियां सही हैं, तो वह संपत्ति खरीद सकता हैं।

फ्यूचर और ऑप्शन में क्या अंतर है? Diffrence Between Future & Option Hindi

फ्यूचर और ऑप्शन डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग का हिस्सा है। फ्यूचर और ऑप्शन कॉन्ट्रक्ट पोर्टफोलियो हेजिंग केलिए सुरु किया गया था। मगर इसको लोगों ने ट्रेडिंग केलिए इस्तेमाल करने लग गए थे। शेयर बाजार में फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग में सबसे लोकप्रिय ऑप्शन ट्रेडिंग है। कारण फ्यूचर ट्रेडिंग में बहोत ज्यादा मार्जिन लगता है। इसमें आपको रिटर्न्स भी ऑप्शन ट्रेडिंग के मुकाबले बहोत कम मिलता है। आपको अच्छे से फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग के बारे में जानने केलिए नीच दिए गए लेक को पढ़े।

फ्यूचर और ऑप्शन में क्या अंतर है?

इक्विटी बाजार में ट्रेडिंग 2 सेगमेंट होते है

1) कैश ट्रेडिंग

इस प्रकार के ट्रेडिंग में आप मॉर्निज के बिना आपके खुदके पैसों ट्रेडिंग कर सकते है। इसमें आप शेयर की दिलीविरी लेकर खरीद और बिक्री कर ट्रेडिंग करते है। इसमें आपको बहोत कम रिटर्न्स मिलता है। फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर मगर इसमें आर्थिक जोखिम भी बहोत कम होता है। शेयर बाजार में पेशे आदर ट्रेडर इस तरह के ट्रेडिंग नहीं करते है । इसमें लेवल लघु समय ( < 1 वर्ष ) के निवेशक ट्रेडिंग करते है।

2) डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग

इस प्रकार के ट्रेडिंग में आप ब्रोकर मॉर्निज पैसों के साथ आपके ट्रेडिंग कर सकते है। इसमें आप स्टॉक ( ITC , HDFC , Reliance ) , करेंसी ( USD/INR ) , इंडेक्स ( NIFTY 50 / SENSEX ) और कमोडिटी ( Cruid Oil , Gold , Silver ) की दिलीविरी लिए बिना खरीद और बिक्री कर ट्रेडिंग करते है। इसमें आपको बहोत ज्यादा रिटर्न्स मिलता है। मगर इसमें आर्थिक जोखिम बहोत ज्यादा होता है। शेयर बाजार में पेशेदार ट्रेडर इस तरह के ट्रेडिंग करते है ।

डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग 2 तरह के होते है

a) फ्यूचर ट्रेडिंग

शेयर मार्किट में फ्यूचर ट्रेडिंग या फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट ट्रेडिंग का मतलब होता हे की आप किसी भी स्टॉक / इंडेक्स को उसकी एक्सपाइरी डेट से पहले खरीद या बेच सकते हे, कोई भी फिक्स प्राइस पर।

b) ऑप्शन ट्रेडिंग

शेयर बाजार मेंहर दिन शेयर और इंडेक्स की मूल्य ऊपर नीचे होते रहता है । इस में अगर आप किसी शेयर को भबिष्य के किसी निधारित मूल्य (strick price) में बेचना और ख़रीदना हो तो आपको किसी के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट करना होता है । इस को आसान भासा में स्टॉक हेजिंग कहे ते है इस के निबेश फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर की रिस्क कम होजा ता है । सभी कॉन्ट्रैक्ट का एक निधारित समय सीमा होता है । इसी कॉन्ट्रैक्ट (Option) को बेचना और खरीदना को option trading कहते है ।

ट्रेडिंग करने केलिए सबसे अच्छी ट्रेडिंग कंपनी कौन सी है?

बाजार में बहोत सारे ऐप है जो कि ऑप्शन ट्रेडिंग देते है मगर सबमें अलग ब्रोकेज चार्ज और मार्जिन के नियम अलग अलग है । इस लिए आपको बहोत सावधानी से अपना ब्रोकर चुने । में आपको कुछ ब्रोकर की सलाह देसकता है ।

1. जेरोधा सेकुरिट्स
2. ऐंजल ब्रोकिंग
3. मोतीलाल ओसबल सेकुरिट्स
4. IIFL सेकुरिट्स
5. उप स्टॉक

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