6. पूर्ण प्रतियोगिता तथा श्रम की गतिशीलता की मान्यता अव्यवहारिक है- यह सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता तथा श्रम गतिशीलता की कल्पना करता है, किन्तु ये कल्पनाएं अव्यावहारिक हैं । न तो श्रम इतना गतिशील होता है तथा न व्यवहार में पूर्ण प्रतियोगिता की दशाएं उपस्थित रहती हैं। इस कारण से मजदूरी सीमान्त उत्पादकता से कम या अधिक हो सकती है। अगर पूर्ण गतिशीलता होती तो सभी उद्योगों में मजदूरी की दर संमान होती । दूसरे, मजदूरी नियोक्ता पर भी निर्भर करती है। अच्छे नियोक्ता अधिक तथा बुरे नियोक्ता कम मजदूरी देते हैं ।
पंचशील सिद्धांत और भारतीय विदेश नीति
वर्ष 1947 में भारत की आजादी के साथ एशिया और अफ्रीका के विभिन्न देश गुलामी की जंजीरों से मुक्त हो रहे थे। विऔपनिवेशीकरण की प्रक्रिया समूचे प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता एशिया व अफ्रीका में धीरे धीरे फैलती जा रही थी। यह दौर शीत युद्ध का दौर था और समूची दुनिया संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस के नेतृत्व में दो गुटों में बंटी हुई थी।
इसी परिवेश में नए स्वतंत्र होने वाले देशों के समक्ष अपनी आजादी को स्थायित्व प्रदान करने, विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने, अपनी संप्रभुता की रक्षा करने, अपनी राजनीतिक सीमाओं की रक्षा करने और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शिकार होने से बचने जैसी चुनौतियां विद्यमान थी। भारत भी इन चुनौतियों से अछूता नहीं था।
अतः भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इन चुनौतियों में से अधिकांश को साधने के लिए पंचशील के सिद्धांत को अपनाया। यह सिद्धांत मूल रूप से पड़ोसी चीन द्वारा उत्पन्न की जाने वाली भावी चुनौतियों से निपटने के लिए अपनाया गया था।
पंचशील समझौता / पंचशील सिद्धांत
वर्ष 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता हस्ताक्षरित किया गया था। इसका मूल उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की व्यवस्था कायम करना था।
वस्तुतः पंचशील सिद्धांतों के माध्यम से ऐसे नैतिक मूल्यों का समुच्चय तैयार करना था, जिन्हें प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना सके और एक शांतिपूर्ण वैश्विक व्यवस्था का निर्माण कर सके।
पंचशील सिद्धांतों के अंतर्गत शामिल किए गए प्रमुख पांच सिद्धांत निम्नानुसार हैं-
- प्रत्येक देश एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करेंगे।
- गैर-आक्रमण का सिद्धांत अपनाया गया। इसके तहत तय किया गया कि कोई भी देश किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करेगा।
- समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
- इसके तहत तय किया गया कि सभी देश एक दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करेंगे तथा परस्पर लाभ के सिद्धांत पर काम करेंगे।
- सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत इसमें ‘शांतिपूर्ण सह अस्तित्व’ (Peaceful Coexistence) का माना गया है। इसके तहत कहा गया है कि सभी देश शांति बनाए रखेंगे और एक दूसरे के अस्तित्व पर किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न नहीं करेंगे।
पंचशील समझौता और भारत-चीन युद्ध
- वर्ष 1954 में चीन के प्रधानमंत्री झोउ एन लाई ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि पंचशील सिद्धांत उपनिवेशवाद के अंत और एशिया व अफ्रीका के नए राष्ट्रों के उद्भव में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे।
- इस दौर से ही भारत ने ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया और चीन पर अत्यधिक भरोसा किया। भारत ने वर्ष 1955 में चीन को इंडोनेशिया में आयोजित होने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों के बांडुंग सम्मेलन में भी आमंत्रित किया था।
- इसी बीच अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के मध्य विवाद चल रहा था। चीन इन दोनों ही भारतीय क्षेत्रों को अपना हिस्सा बताता था। इन विवादों के कारण भारत और चीन के संबंध धीरे-धीरे बिगड़ते जा रहे थे।
- चीन संपूर्ण तिब्बत को अपना हिस्सा मानता था और इसी बीच भारत ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण दे दी थी, इससे चीन अत्यधिक रुष्ट हो गया था। प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता
- भारत और चीन के बीच वर्ष 1954 में हस्ताक्षरित हुए इस पंचशील समझौते की समयावधि 8 वर्षों की थी, लेकिन 8 प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता वर्षों के बाद इसे पुनः आगे बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया। पंचशील समझौते की समयावधि समाप्त होते ही ऊपर वर्णित मुद्दों को आधार बनाकर वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में भारत न सिर्फ पराजित हुआ, बल्कि उसके विभिन्न हिस्सों पर चीन ने कब्ज़ा भी कर लिया। भारत के वे हिस्से आज भी चीन के कब्जे में ही हैं।
पंचशील सिद्धांतों की सीमाएं
- चूँकि भारत इन सिद्धांतों का प्रतिपादक रहा है, इसीलिए भारत इनका मजबूती से पालन प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता करता रहा है, जबकि चीन इन सिद्धांतों को भारत की कमजोरी मानता रहा है। इसीलिए चीन ने इस परिस्थिति का लाभ उठाकर भारत पर आक्रमण कर दिया था और अभी भी सीमा पर तनाव उत्पन्न करता रहता है।
- इन सिद्धांतों के अंतर्गत आदर्शवाद की पराकाष्ठा को अपनाया गया है, जबकि व्यावहारिकता पर कम ध्यान दिया गया है। यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय राजनीति में, प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता विशेष रूप से भारत चीन संबंधों में अधिक कारगर साबित नहीं हो सकी है।
- वर्तमान में भी विश्व के अनेक देश अल्पविकसित या विकसित अवस्था में मौजूद हैं। ऐसे में, पंचशील सिद्धांत उन देशों की व्यावहारिक आवश्यकताएं पूरी नहीं कर सकते हैं और उन्हें पंचशील सिद्धांतों के अतिरिक्त अन्य वैकल्पिक रास्ते तलाश करने होते हैं।
इस प्रकार, हमने समझा कि पंचशील सिद्धांत मुख्य रूप से विदेश नीति में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना स्थापित करने का प्रयास करते हैं। ये सिद्धांत एक ऐसे विश्व का निर्माण करने की बात करते हैं, जिसमें विभिन्न देश आपसी सहयोग के माध्यम से स्वयं का और दूसरे देश का विकास सुनिश्चित कर सकें तथा अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा कर सकें। बेशक इन सिद्धांतों की कुछ खामियां रही है और भारत को 1962 में चीन का आक्रमण भी झेलना पड़ा है, लेकिन इन सबके बावजूद ये ऐसे नैतिक सिद्धांत हैं, जिन्हें आज विश्व के अधिकांश देश अपना चुके हैं और इनका महत्व वर्तमान समय में भी अत्यधिक है।
· ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त की विशेषताएँ
ऑस्टिन के सम्प्रभुता सम्बन्धी इस कथन के विश्लेषण से सम्प्रभुता की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं
ऑस्टिन के अनुसार प्रत्येक राजा मे एक सर्वोच्च शक्ति अर्थात् सम्प्रभुता का होना आवश्यक है । सम्प्रभुता से ही एक समाज स्वतन्त्र तथा राजनीतिक बनकर राज्य का रूप धारण करता है । सम्प्रभुता ही राज्य का सार है।
(2) सम्प्रभुता निश्चित व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह में निहित होती है -
राज्य में कोई न कोई ऐसा निश्चित व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह होता है जो राज्य की सत्ता का प्रयोग करता है। सम्प्रभुता का किसी ऐसे स्थान पर प्रयोग नहीं हो सकता जिसका रूपनिश्चित अथवा संगठित न हो । दूसरे शब्दों में , सम्प्रभुता ईश्वरीय इच्छा , सामान्य इच्छा , जनमत व प्राकृतिक कानून में निवास नहीं करती। यह एक ऐसा निश्चित व्यक्ति या एक निश्चित सत्ता होनी चाहिए जिस पर स्वयं कोई कानूनी प्रभुत्व न हो ।
ऑस्टिन ने राज्य के सम्प्रभु को सर्वोच्च कहा है। राज्य सत्ता किसी दूसरे सम्प्रभु के अधीन नहीं होती। वह किसी की आज्ञा का पालन नहीं करती , परन्तु उसकी आज्ञा का पालन सभी लोग करते हैं। ऑस्टिन सम्प्रभुता पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाता।
(4) सम्प्रभुता कानून से उच्च है -
ऑस्टिन ने बताया है कि सम्प्रभु का आदेश ही कानून है । दूसरे शब्दों में , सम्प्रभुता कानून का एकमात्र स्रोत है। कानून सबके लिए सर्वोच्च है , परन्तु सम्प्रभुता कानून से भी उच्च है , क्योंकि सम्प्रभुता ही समस्त कानूनों का स्रोत है।
ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त की एक विशेषता यह है कि राज्य में सम्प्रभु वही होता है जिसकी आज्ञा का पालन समाज के अधिकांश लोग स्थायी अथवा स्वाभाविक रूप से करते हों। जो लोग कानूनों का पालन नहीं करते , उन्हें दण्ड मिलता है । तात्पर्य यह है कि समाज का अधिकांश भाग आदत के रूप में सम्प्रभु के आदेशों का पालन करे।
( 6) सम्प्रभुता अविभाज्य है -
ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त में एक भाव यह है कि राज्य में निश्चित तथा सर्वोच्च शक्ति केवल एक ही होती है। इस सत्ता का विभाजन नहीं हो सकता।
संक्षेप में , सम्प्रभुता राज्य की आवश्यक , असीमित , स्थायी तथा अविभाज्य शक्ति है , जो किसी निश्चित व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह में निहित होती है और जिसकी आज्ञा का पालन समाज का अधिकांश भाग स्वाभाविक रूप से करता है।
प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता
प्रश्न 50 : वितरण के सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर: सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त
सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त वितरण का केन्द्रीय सिद्धान्त माना जाता है और यह प्रकट करता है कि राष्ट्रीय लाभांश में उत्पत्ति के प्रत्येक साधन का भाग किस प्रकार निर्धारित होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार राष्ट्रीय आय में से उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को जो भाग मिलता है वह उस साधन की सीमान्त उत्पादकता के बराबर होता है।
सीमान्त उत्पादकता का अभिप्राय
किसी साधन की सीमान्त उत्पादकता से अभिप्राय कुल उत्पत्ति में की गई उस वृद्धि से होता है जो साधन की अन्तिम या सीमान्त इकाई के उपयोग द्वारा होती है। किसी एक साधन की सीमान्त उत्पत्ति ज्ञात करने के लिए उत्पत्ति के अन्य साधनों को यथावत् सीमित या स्थिर रखकर इस साधन की एक इकाई बढ़ाई जाती है और उस इकाई से जितना उत्पादन बढ़ता है। वही उस साधन की सीमान्त उत्पत्ति कहलाती है। जैसे किसी फर्म में 20 श्रमिक लगाने से 100 रु. आय होती है। अब यदि फर्म के अन्य साधन यथावत् रखे जाते हैं किन्तु 20 श्रमिकों के स्थान पर 21 श्रमिक कर दिये जाते हैं तो कुल आय 104 रु. होती है। अर्थात् अन्तिम नये श्रमिक को लगाने से आय में 4 रु. की वृद्धि हुई। ये 4 रु. सीमान्त उत्पत्ति कहलायेगी और 4 रु. एक श्रमिक की मजदूरी निर्धारित हो जायेगी। इसी प्रकार हम उत्पत्ति के प्रत्येक साधन की सीमान्त उत्पत्ति का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता
वीडियो: लॉश , हुबर , फेटर का सिद्धांत For NET JRF , College Lecture
सामग्री सिद्धांत और प्रक्रिया प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता सिद्धांत के बीच अंतर यह है कि, सामग्री सिद्धांत मानव आवश्यकताओं को बदलने के कारणों पर अक्सर जोर देता है जबकि प्रक्रिया सिद्धांत मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो प्रेरणा, लक्ष्यों, और इक्विटी की धारणाओं के संबंध में प्रेरणा को प्रभावित करते हैं। ये दोनों सिद्धांत प्रेरणा से जुड़े हुए हैं। यह आलेख दोनों सिद्धांतों को समझाने का प्रयास करता है और सामग्री सिद्धांत और प्रक्रिया सिद्धांत के बीच अंतर की पहचान करने के लिए दोनों इन्वर्टर की तुलना करता है।
कंटेंट थ्योरी क्या है?
सामग्री सिद्धांत या सिद्धांत की जरूरत है प्रेरणा की अवधारणा से संबंधित प्रारंभिक सिद्धांतों के रूप में पहचाना जा सकता है। यह एक व्यक्ति को प्रेरित करने के कारणों को रेखांकित करता है; इसका मतलब है कि यह उन आवश्यकताओं और आवश्यकताओं की व्याख्या करता है जो किसी व्यक्ति को प्रेरित करने के लिए आवश्यक हैं। इन सिद्धांतों को विभिन्न सिद्धांतकारों द्वारा विकसित किया गया है जैसे अब्राहम मास्लो - मास्लो के पदानुक्रम ऑफ नीड्स, फेडरिक हर्जबर्ग - दो कारक सिद्धांत और डेविड मैकलेलैंड - उपलब्धि, संबद्धता और शक्ति की आवश्यकता।
में आवश्यकताओं का मैस्लो का पदानुक्रमशारीरिक जरूरतों, सुरक्षा जरूरतों, सामाजिक जरूरतों, सम्मान की जरूरतों और आत्म-प्राप्ति की जरूरतों के रूप में आवश्यकताओं के पांच स्तर हैं। यदि कोई व्यक्ति पदानुक्रम की प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता जरूरतों के एक स्तर का पीछा कर सकता है, तो वह अगले स्तर की जरूरतों को आगे बढ़ाने की कोशिश करता है और यह माना जाता है कि व्यक्ति पदानुक्रमित क्रम के अनुसार अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
प्रक्रिया सिद्धांत क्या है?
प्रक्रिया के सिद्धांत अपनी आवश्यकताओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में व्यक्तियों के विभिन्न व्यवहार पैटर्न को रेखांकित करते हैं। प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता सुदृढीकरण, प्रत्याशा, समानता और लक्ष्य निर्धारण जैसी चार प्रक्रिया सिद्धांत हैं।
सुदृढ़ीकरण सिद्धांत प्रेरणा के लिए एक और दृष्टिकोण है जो यह तर्क देता है कि पुरस्कृत परिणामों में होने वाले व्यवहार को दोहराया जाने की संभावना है, जबकि परिणाम को दंडित करने वाले व्यवहार को दोहराया जाने की संभावना कम है। चार प्रकार के सुदृढीकरण हैं जो व्यवहार के परिणामस्वरूप हो सकते हैं ।i.e। सकारात्मक सुदृढीकरण, परिहार, दंड और विलुप्ति।
प्रत्याशा सिद्धांत इंगित करता है कि एक स्तर की प्रेरणा मांगे गए पुरस्कारों के आकर्षण और प्राप्त किए गए पुरस्कारों की संभावना पर निर्भर करती है।कर्मचारियों के यह महसूस करने के मामले में कि उन्हें व्यापारिक संगठनों से मूल्य मिलता है और वे काम के प्रयास में अधिक मेहनत करते हैं।
ट्रांजिस्टर की विशेषताएं :
1) इनपुट विशेषताएं
कलेक्टर को रखना - एमीटर (VCE) वोल्टेज स्थिर करता है , बेस - एमीटर (VBE) वोल्टेज को 0 से बढ़ता है और इसी आधार धारा (आईबी) के मूल्यों को नोट किया जाता है। इस VCE के मूल्यों में वृद्धि के लिए दोहराया जाता है। वक्र की योजना बनते समय आईबी के विपरीत VBE को रखने के द्वारा प्रत्येक VCE को मूल्य के लिए प्राप्त इनपुट विशेषताएं कहा जाता है।
2) उत्पादन विशेषताएं
आधार धारा (आईबी) को स्थिर रखने से , कलेक्टर - एमीटर (VCE) वोल्टेज विविध है और इसी से आईसी मूल्य प्राप्त हो रहे हैं। यह आईबी के मूल्यों में वृद्धि के लिए दोहराया जाता है। आईबी के प्रत्येक मान के लिए VCE के विपरीत आईसी को रखने के द्वारा प्राप्त वक्र को उत्पादन विशेषताएं कहा जाता है।
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