Value Investing

म्युचुअल फंड्स में इन्वेस्ट कैसे करे – आसान हिन्दी में बेहतरीन आर्टिकल्स की एक शुरुआती गाइड

म्युचुअल फंड इन्वेस्टमेंट हर एक इन्वेस्टर के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं । जिसका कारण है इससे मिलने वैल्यू इनवेस्टिंग बनाम ग्रोथ इनवेस्टिंग वाले फायदे। इसके कईं फायदों में से कुछ सबसे महत्वपूर्ण फ़ायदे नीचे दिए हैं, जो इन्वेस्टर्स को अपनी ओर खींचते है और जिसकी वजह से –

  • इन्वेस्टर्स कितनी भी राशि के साथ शुरुआत कर सकते हैं ( 500 जितना कम भी )
  • इन्वेस्टर्स, अलग-अलग स्टॉक्स और डेट,गोल्ड जैसे इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट कर सकते हैं
  • हर महीने ऑटोमेटेड इन्वेस्मेंट्स शुरू कर सकते हैं (SIP)
  • डीमैट अकाउंट खोले बिना भी इन्वेस्ट कर सकते हैं

शुरुआती इन्वेस्टर्स के लिए इस म्युचुअल फंड इन्वेस्टमेंट गाइड में हमने कुछ आर्टिकल्स को आपके लिए चुना है। जो म्युचुअल फंड को समझने में और कैसे इन्वेस्ट करना शुरू करें, इसमें आपकी मदद करेंगे। हम सुझाव देंगे कि आप इस पेज को बुकमार्क कर लें ताकि आप इन आर्टिकल्स को अपनी सुविधा के अनुसार कभी भी पढ़ सकें।

1.म्युचुअल फंड्स की जानकारी

अगर आप म्युचुअल फंड्स और उसके प्रकारों के बारे में पहले से जानते हैं, तो आप सीधे अगले सेक्शन पर जा सकते है । ये 5 आर्टिकल्स, म्युचुअल फंड्स और उसके प्रकारों के बारे में सारी ज़रूरी जानकारी देंगे । हम टैक्स सेविंग फंड्स पर भी एक विशेष आर्टिकल दे रहे हैं।

    और ये कैसे काम करते हैं?
  • म्युचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करना बनाम डायरेक्ट इक्विटी
  • . म्युचुअल फंड्स के फायदे और नुकसान
  • टैक्स सेविंग(ईएलएसएस) फंड्स

2.म्युचुअल फंड्स का एक पोर्टफ़ोलियो बनाना

म्युचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करने का सही तरीका है – सबसे पहले इसका पोर्टफोलियो बनाना । एक पोर्टफोलियो, म्युचुअल फंड का एक समूह होता है। यह आपको अपने इन्वेस्टमेंट के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा। आपका सारा रिटर्न् आपके पूरे पोर्टफोलियो पर टिका होता है, ना कि किसी एक विशेष फंड पर। इस सेक्शन में, हम यह सीखेंगे कि म्युचुअल फंड पोर्टफोलियो कैसे तैयार किया जाता है।

  • पोर्टफोलियो इन्वेस्टिंग क्या है कैसे तैयार किया जाए
  • अपने पोर्टफोलियो के लिए सही म्युचुअल फंड चुनना
  • म्युचुअल फंड को कब बेचें

3.म्युचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करना

कईं शुरुआती इन्वेस्टर्स म्युचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करने की प्रक्रिया को मुश्किल मानकर उसमें इन्वेस्ट करने से कतराते हैं। ये आर्टिकल्स ऐसे ही शुरुआती इन्वेस्टर्स को म्युचुअल फंड को समझने में और इन्वेस्टमेंट शुरू करने में मदद करेंगे।

    और ये म्युचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करने के लिए ज़रूरी क्यों है (SIP) के द्वारा इन्वेस्ट करना

4.कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियाँ

म्युचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करते समय कुछ ज़रूरी बातें है, जिनकी जानकारी हर शुरुआती इन्वेस्टर को वैल्यू इनवेस्टिंग बनाम ग्रोथ इनवेस्टिंग होनी चाहिए । इन बातों को समझे बिना इन्वेस्ट करने से, रिटर्न्स पर काफ़ी बुरा असर पड़ सकता है।

  • म्युचुअल फंड्स पर टैक्स
  • म्युचुअल फंड्स से पैसे निकालने पर एग्ज़िट लोड
  • म्युचुअल फंड्स का एक्सपेंस वैल्यू इनवेस्टिंग बनाम ग्रोथ इनवेस्टिंग रेशो
  • इन्वेस्टमेंट से जुड़ी भाषा की जानकारी

जहाँ म्युचुअल फंड्स की बात आती है वहाँ आमतौर पर लिस्ट में दिए गए इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है । हालाँकि शुरुआती इन्वेस्टर्स को इन सभी शब्दों को याद रखने की ज़रूरत नहीं है, आप किसी भी शब्द को सीखने के लिए, ग्लोसरी (डिक्शनरी) के तौर पर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

Value Investing: लंबे समय में संपत्ति बनाने के लिए बेहतर है वैल्यू इन्वेस्टिंग, जानें किस म्‍यूचुअल फंड ने दिया जबरदस्‍त रिटर्न

Value Investing Funds: लंबे समय में बाजार के उतार-चढ़ाव के कई चरण देखने को मिलते हैं. अगर आप में धैर्य है तो आप वैल्‍यू इन्‍वेस्टिंग फंड में निवेश कर बेहतर रिटर्न प्राप्‍त कर सकते हैं .

By: ABP Live | Updated at : 26 Sep 2022 12:57 PM (IST)

Value Investing Fund: भला कौन ऐसा निवेशक होगा जो अपने इन्‍वेस्‍टमेंट पर ज्‍यादा मुनाफा न चाहता हो. बाजार में विभिन्‍न प्रकार के म्‍यूचुअल फंड उपलब्‍ध हैं लेकिन जब बात लंबे समय में धन-संपत्ति बनाने की बात आती है तो वैल्‍यू इन्‍वेस्‍टमेंट सबसे ऊपर आता है. वैल्‍यू फंड (Value Fund) के तहत जितने भी इक्विटी म्‍यूचुअल फंड्स (Equity Mutual Funds) हैं, उन सबका 'स्‍टाइल फैक्‍टर' अलग है. एक रिसर्च किया गया जिसके लिए मनी मैनेजमेंट इंडिया ने मॉर्निंगस्‍टार (Morningstar) द्वारा उपलब्‍ध कराए गए आंकड़े और ओपनक्‍यू के फैक्‍टर एनालिसिस टूल्‍स पर भरोसा किया गया.

द मनी हंस एंड मनी मैनेजमेंट इंडिया की फाउंडर हांसी मेहरोत्रा के अनुसार, म्यूचुअल फंड सेलेक्‍ट करते समय निवेशकों को परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (AMC) और फंड के निवेश की फिलॉसफी (Investment Philosophy) और तरीके को समझना जरूरी है. इससे उन्हें यह पता चल जाएगा कि बाकी फंडों की तुलना में यह फंड कब और कैसा प्रदर्शन करेगा, पर ऐसा करना आसान नहीं होता है क्योंकि इंडस्ट्री वैल्यू इन्वेस्टिंग जैसे शब्दों का बहुत ही कम इस्तेमाल करती है.

मॉर्निंगस्टार के एक एनालिसिस के अनुसार, 2018 के बाद जिन कई फंडों को वैल्यू कैटेगरी में फिर से क्‍लासिफाई किया गया उनके पोर्टफोलियो में भी ग्रोथ स्टॉक होल्डिंग में गिरावट नजर आ रही है. इसलिए कई वैल्यू फंड रिलेटिव वैल्यू अप्रोच का पालन करते हैं.

आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल वैल्यू डिस्कवरी फंड (ICICI Prudential Value Discovery Fund) उन चंद म्‍यूचुअल फंडों में से एक है, जिसे मॉर्निंगस्टार द्वारा गोल्ड रेटिंग (Gold Rating) दी गई है. इस फंड के मैनेजर आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के ईडी और सीआईओ एस नरेन हैं. नरेन निवेश की वैल्यू स्टाइल के प्रैक्टिशनर रहे हैं, इसलिए फंड की स्ट्रेटजी के लिए वह अपने लंबे अनुभव का इस्‍तेमाल करते हैं.

आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल वैल्यू डिस्कवरी फंड ने हाल ही में 18 साल पूरे किए हैं. इस स्कीम का एयूएम 24,694 करोड़ रुपये है जो वैल्यू कैटेगरी में कुल एयूएम का लगभग 30% है. यह स्कीम में वैल्यू इन्वेस्टिंग में निवेशक के विश्वास (Investor’s Trust) को दर्शाता है.

अगर किसी निवेशक इस फंड की शुरुआत में (16 अगस्त, 2004) ही 10 लाख रुपये का एकमुश्त निवेश किया होता तो उसकी कीमत 31 जुलाई 2022 2.5 करोड़ रुपये होती. यानी इस फंड ने सालाना 19.7% का सीएजीआर रिटर्न दिया है. निफ्टी 50 में इसी तरह के निवेश से 15.6 फीसदी का सीएजीआर रिटर्न मिलता और कुल कीमत 1.3 करोड़ रुपये होती. चूंकि वैल्यू इन्वेस्टिंग लांग टर्म के निवेश के लिए उपयुक्त होता है तो एसआईपी एक अच्छा निवेश का मार्ग बन जाता है.

फंड की शुरुआत के समय से सिस्‍टेमेटिक इन्‍वेस्‍टमेंट प्‍लान (SIP) के जरिये अगर किसी निवेशक ने 10,000 रुपये का मासिक निवेश किया होता तो निवेश की रकम 21.6 लाख रुपये होती. 31 जुलाई 2022 तक यह बढ़कर 1.2 करोड़ रुपये हो गया होता मतलब उन्‍हें 17.3 प्रतिशत का सीएजीआर मिलता.

फंड मैनेजर एस नरेन का कहना है कि वैल्यू फंड में निवेश करते समय धैर्य होना जरूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि बाजार में कई ऐसे समय भी देखने को मिलेंगे जब वैल्‍यू कमजोर होगा. इसलिए, निवेशकों को धैर्य रखने और निवेश में बने रहने की आवश्यकता होगी और जब चक्र बदल जाता है, तो इतिहास गवाह है कि धैर्य का भरपूर लाभ मिलता है.

Published at : 26 Sep 2022 12:54 PM (IST) Tags: Mutual Funds SIP investment tips icici prudential value discovery fund Value Funds हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

वैल्यू और ग्रोथ निवेश के फॉर्म्युले से मिलता है ज्यादा रिटर्न

कुछ फंड मैनेजर शेयरों वैल्यू इनवेस्टिंग बनाम ग्रोथ इनवेस्टिंग को उनके इंट्रिंसिक वैल्यू के आधार पर चुनते हैं तो कुछ का जोर ग्रोथ की संभावना पर होता है.

दूसरी तरफ, ग्रोथ फंड मैनेजर उन शेयरों पर नजर रखते हैं जिनके मुनाफे में बढ़ोतरी की दर औसत से ज्यादा होती है, डिविडेंड यील्ड कम और पी/ई वगैरह ज्यादा होता है। उनका दांव कंपनी के तरक्की करने की संभावना पर होता है और ये सही कंपनियों के लिए ज्यादा कीमत देने से परहेज नहीं करते। इसलिए ये तेजी से बढ़ती कंपनियों की तलाश में रहते हैं या वैसे तरक्की की संभावनाओं वाले उभरते सेक्टर में संभावनाएं तलाशते हैं जहां उनको अगली इंफोसिस या रिलायंस जैसी कंपनी मिल सके। निवेश की ग्रोथ स्ट्रैटेजी में काफी जोखिम होता है क्योंकि इसमें नुकसान की आशंका भी ज्यादा होती है।

वैल्यू और ग्रोथ की पहेली
जरूरी नहीं है कि जो चीज सस्ती है, वह अच्छी ही होगी। कभी-कभार उद्योग के डाइनैमिक्स में बदलाव होने से शेयरों में गिरावट आती है। जिसके असर का अनुमान नहीं लगाया गया था इसलिए उसको कंपनी के नतीजों में शामिल नहीं किया गया था। ऐसे में इन शेयरों से निवेशकों और फंड मैनेजर को बड़ा नुकसान हो सकता है। वैल्यू इनवेस्टिंग में लंबी अवधि में कम लेकिन स्थिर रिटर्न मिलता है। चूंकि शेयरों की असल कीमत में गिरावट आने का जोखिम कम होता है इसलिए इनके बाजार भाव में भी उतार-चढ़ाव का जोखिम कम रहता है। कुछ निवेशक वैल्यू इनवेस्टिंग को कॉन्ट्रेरियन इनवेस्टिंग (बाजार से उलट सोच पर निवेश) के साथ जोड़ कर देखते हैं जैसा असल में होता नहीं है। कॉन्ट्रेरियन इनवेस्टिंग में ज्यादातर निवेशक बाजार से उलट चाल चलते हैं। बाजार के तेज उतार चढ़ाव में निवेश के ऐसे मौके बनते हैं। हालांकि आर्थिक तरक्की के मौजूदा दौर में ग्रोथ इनवेस्टिंग से आमतौर पर छोटी अवधि में ऊंचा रिटर्न मिलता है। अगर किसी उद्योग में तरक्की की बेहतर संभावना है तो वहां ऐसे निवेशक जाएंगे जो बड़ी रकम का निवेश कर सकते हैं। इससे लंबी अवधि में यह उद्योग अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता खो देता है।

वैल्यू या ग्रोथ में कौन सा विकल्प बेहतर?
सभी बाजारों में वैल्यू स्ट्रैटेजी का प्रदर्शन लंबी अवधि में दूसरी निवेश रणनीति से बेहतर रहा है। एमएससीआई डिवेलप्ड मार्केट वर्ल्ड इंडाइसेज के प्रदर्शन के अध्ययन के मुताबिक पिछले 25 साल में वैल्यू इनवेस्टिंग का रिटर्न ग्रोथ इनवेस्टिंग से बहुत ज्यादा रहा है। एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट इंडाइसेज में भी पिछले 10 साल से वैल्यू इनवेस्टिंग का प्रदर्शन ग्रोथ इनवेस्टिंग से बेहतर रहा है। दुनिया के मशहूर वैल्यू इनवेस्टर वॉरेन बफेट निवेश की इस विधा को नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं। हालांकि ग्रोथ इनवेस्टिंग में किसी को बहुत बड़ी कामयाबी मिली हो इसका ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिलता। इसका प्रदर्शन किसी मार्केट साइकिल में टुकड़ों में होता है। यह भारत में काफी चलन में रहा है।

घरेलू परिदृश्य
भारत में म्यूचुअल फंड उद्योग अब भी शैशवावस्था में है। जिस समय से आर्थिक तरक्की की रफ्तार तेज हुई, तब से बाजार में म्यूचुअल फंड की भीड़ लगी है। शेयर बाजार में तेज उछाल की संभावनाओं को देखते हुए फंड मैनेजर ग्रोथ इनवेस्टिंग का तरीका अपनाते रहे हैं। हाल के दिनों में बाजार में तेज उतार-चढ़ाव को देखते हुए ज्यादातर फंड मैनेजर वैल्यू और ग्रोथ इनवेस्टिंग की मिली-जुली रणनीति पर काम कर रहे हैं। निवेशकों को भी चाहिए कि वे इनवेस्टिंग का मिला-जुला रूप अपनाएं।
अमर रानू
सीनियर मैनेजर,
वेल्थ मैनेजमेंट-रिसर्च
मोतीलाल ओसवाल सिक्युरिटीज

ग्रोथ व वैल्यू हैं निवेश के दो तरीके

ऐसे शेयरों की कीमत ज्यादा होती है। दूसरी ओर वैल्यू इनवेस्टिंग में उन शेयरों में निवेश किया जाता है जो अंडरवैल्यूड होते हैं और जिनकी कैपिटल बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है लेकिन निवेशकों में ज्यादा आकर्षण का केंद्र नहीं होते।

हमारा सवाल ट्रेलिंग कमीशन पर है। अगर किसी ने सीधे निवेश किया है और शुरुआती निवेश के बाद भी एजेंट को इंट्रोडयूस नहीं किया है तो क्या ऐसे मामलों में भी ट्रेलिंग कमीशन लगेगा?

क्या एजेंट को कमीशन एएमसी की इनकम से दिया जाएगा या मेरे निवेश से? मैं जानना चाहूंगा कि हमारे एकाउंट स्टेटमेंट में एक्सपेंस (खर्च) का अनुपात कैसे दिखाया जाता है। क्या यह शुरुआती निवेश के बाद हर साल हमारे निवेश पर लगता है और क्या इस अनुपात का हमारे पर असर पड़ता हैं?

अगर आप शुरुआती निवेश में भी सीधे निवेश करते हैं और किसी एजेंट को नहीं शामिल करते तो आपके निवेश से कोई किसी को कोई ट्रेल कमीशन देने की जरूरत नहीं। ट्रेल कमीशन एएमसी की इनकम से नहीं दिया जाता बल्कि स्कीम से पूल आधार पर लिया जाता है।

लिहाजा, आपके डायरेक्ट निवेश से बचे ट्रेल कमीशन का फायदा सभी निवेशकों को भी मिलता है। अब आपके सवाल पर आते हैं एक्सपेंस रेशियो एकाउंट स्टेटमेंट में नहीं दिखाया जाता।

इसमें स्कीम के संचालन से जुड़ी फीस और खर्च शामिल किए जाते हैं और इसे एनएवी से घटा दिया जाता है। आप सीधे निवेश करें या एजेंट के जरिए आपके एक्सपेंस रेशियो पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

मैने रिलायंस नैचुरल रिसोर्सेस फंड में एनएफओ के दौरान जनवरी 2008 में दस हजार का निवेश किया था। उस समय उन्होंने 2.25 फीसदी का एंट्री लोड लिया था, हालांकि हमने सुना था कि स्कीम पर कोई एंट्री लोड नहीं होगा। कृपया बताएं।

रिलायंस नैचुरल रिसोर्सेस फंड में दो करोड़ के नीचे के निवेश पर एंट्री लोड 2.25 फीसदी है। बिना एजेंट के सीधे निवेश करने पर कोई भी फंड एंट्री लोड नहीं लगता। लिहाजा अगर आपने किसी ब्रोकर के जरिए निवेश किया है तो लोड लगेगा अन्यथा नहीं।

अगर हम किसी ईएलएसएस स्कीम में अतिरिक्त खरीदारी करते हैं तो क्या खरीद की तारीख से आगे के तीन साल के लिए उसे रखना जरूरी होगा?

जी हां, अगर आप ईएलएसएस में अतिरिक्त यूनिट खरीदते हैं तो आपको अतिरिक्त यूनिट खरीद की तारीख से तीन साल के लिए रखनी होंगी। लेकिन जो यूनिट आपने पहले से ले रखी हैं उन्हे उनकी खरीद के तीन साल पूरे होने पर भुनाया जा सकता है।

मैं ईटीएफ वैल्यू इनवेस्टिंग बनाम ग्रोथ इनवेस्टिंग को समझना चाहता हूं। एनएफओ के बाद ईटीएफ स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड होते हैं तो इससे एएमसी को कैसे लाभ होता है? इसकी एनएवी कैसे घोषित होती है?

एक ईटीएफ पोर्टफोलियो के मामले में इंडेक्स फंड जैसा होता है। बॉस्केट ऑफ स्टॉक्स उसी अनुपात में होता है जैसा पहले से तय इंडेक्स में होता है। शुरुआत में हिस्सेदार फंड को बास्केट ऑफ स्टॉक्स देते हैं और बदले में एक्सचेंज में फंड के यूनिट लेते हैं।

यह यूनिट फिर शेयर बाजार में ब्रोकरों के जरिए ट्रेड होते हैं। लिहाजा, जिन निवेशकों को ईटीएफ में यूनिट लेने होते हैं, उन्हें डीमैट खाता खोलना जरूरी होता है।

ईटीएफ के भाव वैल्यू इनवेस्टिंग बनाम ग्रोथ इनवेस्टिंग अंडरलाइंग इंडेक्स (जिस इंडेक्स में वे हैं)के साथ चढ़ते उतरते हैं। एनएवी आमतौर पर इंडेक्स की वैल्यू का एक हिस्सा होती है, जैसे दसवां हिस्सा या सौवां हिस्सा।

लेकिन ये जिस भाव पर ट्रेड होते हैं, वह मांग और आपूर्ति से तय होता है। लिहाजा ईटीएफ प्रीमियम पर या डिस्काउंट पर ट्रेड हो सकता है।

ईटीएफ से एएमसी को फायदा वैसे ही होता है जैसे दूसरे म्युचुअल फंडों को होता है। लेकिन चूंकि यह एक इंडेक्स को ट्रैक करता है, इसे पोर्टफोलियो के प्रबंधन की उस तरह जरूरत नहीं पड़ती।

ब्याज दरों में मौजूदा गिरावट को देखते हुए क्या छह माह के लिए गिल्ट फंड में निवेश बैंक की एफडी से बेहतर निवेश होगा? एक से तीन साल की एफडी (टैक्स के बाद) में 6.67 फीसदी का रिटर्न मिलेगा और जैसा कि बताया जाता है गिल्ट फंडों में अच्छा रिटर्न मिलता है।

गिल्ट फंड में क्या कोई अतिरिक्त जोखिम होता है? या फिर रिडेम्पशन के दबाव में इसमें कोई तरलता का संकट रहता है?

गिरती ब्याज दरों के माहौल में गिल्ट फंडों की ईल्ड गिरती है और उनकी कीमत बढ़ने लगती है। जब ब्याज दरें कमजोर होंगी तो गिल्ट को फायदा होगा।

लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि ब्याज दरें पिछले कुछ समय से ही कमजोर पड़ रही हैं, इसके अलावा गिल्ट फंड की ईल्ड एक जैसी नहीं है।

लिहाजा इसमें काफी उतार चढ़ाव है। भविष्य में रिडेम्पशन के दबाव में उस इंस्ट्रूमेंट की लिक्विडिटी और उसकी वैल्यू उस समय की कीमतों पर निर्भर करेंगीं। लिहाजा इसमें ब्याज दरों की हलचल के साथ ही उतार-चढ़ाव की उम्मीद भी करनी चाहिए।

What Is Value Investing Strategy?

stock market में invest करने की सैकड़ों investment strategy हैं but जिस strategy से सबसे ज़्यादा और लगातार पैसे बना है वह है value investing, यहां तक कि दुनिया के सबसे अमीर investor वारेन बफ़ेट value investing को investment करने का सबसे सही strategy मानते हैं इसलिए आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि वैल्यू इन्वेस्टिंग क्या होती है यह कैसे काम करती है और हम कैसे value investing कर सकते हैं क्योंकि value इन्वेस्टिंग ना सिर्फ बस एक strategy है बल्कि हर बड़े investors का बताया हुआ investment करने का सबसे best तरीका है

Value Investing

अब जानते हैं कि value investing क्या होती है दोस्तों अक्सर जब अच्छी चीज़ों पर discount मिलता है तो हम उसे buy करते हैं क्योंकि तब हमें सौ रुपए की चीज़ अस्सी रुपए या सत्तर रुपए में मिल जाती है जो कि हमें अच्छा लगता है और इन्वेस्टिंग में हमें बिल्कुल इसी तरह करना होता है वैल्यू investing एक investment strategy है जिसमें किसी stock को तब buy किया जाता है जब वह discount में मिल रहा हो और discount में मिलने वाले स्टॉक को undervalued स्टॉक कहा जाता है वैल्यू investing की शुरुआत की थी महान investors बेंजामिन ग्राहम और डेविड ने,
दोस्तों वैल्यू investing को समझने के लिए पहले हमें इसकी theories को समझना होगा, पहली यह है कि प्राइस value दोनों अलग अलग चीज़ें होती हैं वैल्यू इन्वेस्टिंग के हिसाब से हर company की एक value होती है इसे रियल value कहा जाता है और एक company की इन्ट्रिंसिक value उस company के strength और future work पर depend करती है वहीं हर company का stock का price market पर depend करता है और company का stock price अपनी इन्ट्रिंसिक value थे कम ज्यादा या बराबर हो सकता है
example के लिए अगर यह company की value सौ रुपए per share है तो हो सकता है कि उसका stock price एक सौ बीस रुपए या एक सौ पचास रुपए हो

और वैल्यू investing में हम किसी stock को तभी buy करते हैं जब उसकी stock price उसके intrinsic value से कम हो,
दूसरी theory यह है कि share market में share की price में गिरावट होना risk नहीं बल्कि opportunity है
दोस्तों generally finance में यह माना जाता है कि किसी stock की प्राइस जितनी तेजी से change होती है वो stock उतना ही risky होता है पर value investing इस logic को बिल्कुल नहीं मानता वैल्यू इन्वेस्टिंग के according share price के तेज़ी से change होने की वजह से ही stock की इन्ट्रिंसिक वैल्यू से कम हो जाती है
और हमें स्टॉक buy करने की opportunity मिलती है और दोस्तों undervalued स्टॉक को buy करने में रिस्क ज़्यादा नहीं बल्कि कम होता है क्योकि उस समय हमें सौ रुपए का stock अस्सी रूपए या साठ रुपए या पचास रुपए में मिल सकता है

और तीसरी theory ये है कि किसी भी stock की price long term में अपने इन्ट्रिंसिक value को ही follow करती है दोस्तों short term में stocks की प्राइस अपनी value से कम या ज़्यादा हो सकती है पर long term में हर company की stock price अपनी interesting value को represent करती है
example के लिए हो सकता है कि एक stock की इन्ट्रिंसिक value सौ रुपए हो और market में उसकी price पचास रुपए हो जाए तो लॉन्ग टर्म में उसकी प्राइस 100 रुपए तक ज़रूर जाएगी साथ ही यह भी हो सकता है कि एक stock की इन्ट्रिंसिक value पचास रुपए हो और market में उसकी प्राइस सौ रुपए हो जाए लेकिन long term इस stock की price भी अपनी इन्ट्रिंसिक वैल्यू यानी पचास रुपए पर आ जाएगी
दोस्तों stock की price लंबे समय में अपनी इन्ट्रिंसिक वैल्यू के आसपास ही रहती है stock की प्राइस अपने value के ऊपर नीचे ट्रेड करती रहती है दोस्तों वैल्यू investing इन्हीं तीन theories पर काम करती है दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सफल investor जैसे वारेन बफ़ेट charlie मुंगेर और india में रामदेव अग्रवाल विजय केडिया, राधा किशन दमानी सभी ने बस इसी strategy से लगातार हज़ारों करोड़ रुपए बनाये हैं और आज के सबसे बड़े value investor Warren बफ़ेट ने कहा है कि वैल्यू investing is simple but not easy यानी कि value investing एक simple investment strategy तो है लेकिन इसे follow करना आसान नहीं है वैल्यू इन्वेस्टिंग strategy में हमें उन स्टॉक्स को buy करना होता है जो under valued होते है और कोई stock undervalued होता है जब market में ज्यादा लोग उसे sell कर रहे हो ऐसे में हमें उस stock को सबसे अलग सोचते हुए buy करना होता है जो कि एक बहुत मुश्किल step होता है और यह मुश्किल step सफल और असफल को अलग करता है दोस्तों वैल्यू investing दुनिया की सबसे सफल investment strategy है और अगर हम इसको सीख जाए तो हम भी stock market में एक अच्छा investor बन सकते हैं वैल्यू इन्वेस्टिंग में सफल होने के लिए हमारे pass साहस होना बहुत ज़रूरी है
दोस्तों हमने देखा कि value investing में हम शेयर्स को तभी buy करते हैं जब उसका प्राइस अपनी इन्ट्रिंसिक value से कम हो गया हो पर हमें किसी stock इन्ट्रिंसिक value कैसे पता चलती है
तो इसका जवाब है कि किसी भी stock की इन्ट्रिंसिक value को हमें खुद calculate करना होता है यह थोड़ा मेहनत भरा काम है और हमें इसके लिए बहुत सारे तरीकों का समझना पढ़ना होता है dividend discount model, discounted cash model, etc
दूसरी चीज़ है discipline दोस्तों जब हम बहुत सारे स्टॉकस की value को calculate कर लेंगे तो फिर हमें discipline रखकर सिर्फ उन्ही stocks को buy करना है जो under valued है यानी जिनकी stock price अपने इन्ट्रिंसिक value से कम है दोस्तों यहां पर ज्यादातर investors अपना discipline खो देते हैं और over valued स्टॉक्स को buy कर लेते हैं उन stocks को buy करते हैं जिनकी प्राइस इन्ट्रिंसिक value से ज़्यादा है और फिर जब ऐसे stock की प्राइस काम होकर अपने intensive value को बराबर आ जाती है तो उन्हें loss उठाना पड़ता है हमे एक बात का discipline रखना है कि जब तक हमें ववलुएड stock मिलेगा हम stocks को buy नहीं करेंगे, Thanks For Reading

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