तीसरा, क्रियान्वयन की शासकीय क्षमता को लेकर भी चिंता है। सरकार को सार्वजनिक निवेश की बदौलत स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्र में बेहतरी लानी होती है। केंद्रीय बजट में अनुशासन एवं निवेश में विविधता लोकलुभावन उपाय नहीं किए गए लेकिन राज्यों के चुनावों में ऐसे वादे किए जाते हैं। नि:शुल्क बिजली जैसे वादे खासतौर पर घातक हैं। सब्सिडी की जगह आय हस्तांतरण ने ले ली है जो कम से कम विसंगति नहीं पैदा करती। परंतु एक अरब से अधिक आबादी तथा कमजोर कर आधार के साथ इन्हें बेहतर लक्षित करना होगा। उधारी की सीमा राज्यों को प्रभावित करती है। इन्हें प्राप्त करने के लिए वे निवेश में कमी करते हैं। पंजाब इससे हुए नुकसान का प्राथमिक उदाहरण है।

आम बजट में नजर आई सुसंगति और निरंतरता

अक्सर शुरुआती धारणा ही मजबूत हो जाती है। परंतु नए आंकड़ों पर नजर डालना भी महत्त्वपूर्ण है। हमें बताया गया कि कोविड-19 के झटके के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाली रही और वृद्धि में सुधार इसलिए हो रहा है कि गिरावट आई। परंतु अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के 2020 और 2021 के हालिया वृद्धि अनुमान दर्शाते हैं कि 6.अनुशासन एवं निवेश में विविधता 6 फीसदी ऋणात्मक और 9 फीसदी के साथ भारत मैेक्सिको (8.2 फीसदी ऋणात्मक तथा 5.3 फीसदी ), स्पेन (10.8 फीसदी ऋणात्मक एवं 4.9 फीसदी) तथा फ्रांस (8 फीसदी ऋणात्मक एवं 6.7 फीसदी) आदि से बेहतर स्थिति में है।

जिस वृहद आर्थिक नीति ने हमें यह हासिल करने में मदद की वह बजट अनुशासन एवं निवेश में विविधता में अस्पष्ट ही दिखती है। सरकार का कर अनुपात असहज करने वाले स्तर तक बढ़ चुका है तथा ब्याज भुगतान के चलते आधा राजस्व उसे चुकाने में जा रहा है। यह जापान और अमेरिका के उलट है जहां सरकारें उच्च कर्ज के बावजूद कम ब्याज दर पर कर्ज हासिल कर सकती हैं। इसके बावजूद निजी खपत और निवेश को मदद की आवश्यकता है।

गाँधी जी की छात्र संकल्पना, अध्यापक ,बुनियादी शिक्षा अनुशासन एवं निवेश में विविधता की असफलता के कारण

गाँधी जी की छात्र संकल्पना| गाँधी जी की दृष्टि अध्यापक |बुनियादी शिक्षा की असफलता के कारण | Gandhi Student Concepts and Basic Education

1. इसका सर्वप्रमुख कारण सत्ताधारी वर्ग द्वारा बुनियादी शिक्षा को अस्वीकार किया जाना है। इन वर्गों मे शारीरिक श्रम के प्रति उदासीनता की परम्परा रही है। उनका आकर्षण पुस्तक आधारित शिक्षा पर रहा है। इस वर्ग ने स्कूल के पाठ्यक्रम में शारीरिक श्रम और उत्पादक कार्य आरम्भ करने के विरोध मे सामाजिक और मानसिक दबाव डाला ।

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