पेटीएम पोस्टपेड सेवा क्या है? इसके क्या फायदे हैं? What is PayTM post paid Service in Hindi
अब ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा देने वाली कंपनियां भी लोगों को उधारखाता की सुविधा देने लगी हैं। ठीक वैसे ही, जैसे कि आप अपने आसपास की किराने की दुकान या सब्जी वाले या दूध वाले से पा जाते हैं। यानी कि महीने भर सामान लेते रहिए और महीने के अंत में, अपना हिसाब-किताब कर दीजिए। PayTM ने अपने ऐसी सेवा PayTM Post Paid के नाम से शुरू की है। इस लेख में हम जानेंगे कि पेटीएम पोस्टपेड सेवा क्या है? इसके कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? इसके क्या फायदे हैं? What is PayTM PostPaid Service in Hindi.
पूरा लेख एक नजर में
पेटीएम पोस्टपेड सेवा क्या है? What is PayTM PostPaid Service
पेटीएम पोस्ट पेड सेवा एक प्रकार की Buy Now, Pay Later (BNPL) सर्विस है। इसमें पेटीएम कंपनी अपने मोबाइल एप (PayTM App) के माध्यम से, आपको बिना कुछ भुगतान किए सामान प्राप्त करने की सुविधा देती है। अगले 30 दिन के भीतर कभी भी उसका पैसा चुकता कर सकते हैं। सामान खरीदने के अलावा भी कई तरह के खर्च हैं, जो आप इस सेवा का इस्तेमाल करके पूरा कर सकते हैं और बाद में अगले महीने उनका भुगतान कर सकते हैं, जैसे कि मोबाइल या DTH रिचार्ज करना, फिल्म के टिकट बुक करना, बस, ट्रेन या हवाई यात्रा के टिकट बुक करना, बिजली का बिल चुकाना वगैरह।
60 हजार रुपए तक हो सकती है खर्च की लिमिट : फिलहाल PayTM अपने यूजर्स को 60 हजार रुपए तक की लिमिट में इस तरह से खर्च करने और बाद में भुगतान की सुविधा दे रहा है। दरअसल, इस सर्विस को अपने मोबाइल पर चालू करते हैं तो आपको 60 हजार रुपए तक का लोन मिल जाता है। इसे आप जैसे चाहें, वैसे खर्च के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन, ध्यान रखें, कि इसमें आपको पैसा निकालने की छूट नहीं होती। इससे सिर्फ सामान या सेवाओं का भुगतान कर सकते हैं।
30 दिन तक कोई पेनाल्टी नहीं लगती: PayTM PostPaid के माध्यम से किए गए सौदों का अगर, आप 30 दिन के भीतर अपना भुगतान कर देते हैं तो आपको कोई ब्याज या पेनाल्टी नहीं लगता। लेकिन, अगर उस तारीख के बाद भुगतान करते हैं तो बकाया रकम की मात्रा के हिसाब से पेनाल्टी लिमिट ऑर्डर क्या है? चुकानी पड़ेगी। पेनाल्टी संबंधी डिटेल्स, हमने इसी लेख में आगे चलकर दिए हैं।
1 तारीख को आएगा बिल, 7 तक करना होगा भुगतान
हर महीने की 1 तारीख से लेकर अंतिम तारीख तक की खरीदारियों और खर्च का बिल तैयार किया जाएगा। यह आपका Billing Period होगा। Billing Period के बाद उसका का ब्योरा (Statement) अगले महीने की 1 तारीख को आपके email पर भी आ जाएगा। इसका भुगतान आपको उस महीने की 7 तारीख तक कर देना होगा।
आप अपने बिल का भुगतान डेबिट कार्ड/क्रेडिट कार्ड/नेट बैंकिंग/पेटीएम वॉलेट/UPI/लिंक्ड बैंक अकाउंट से कर सकते हैं।
विलंब से बिल या बकाया भुगतान करने पर पेनाल्टी
Penalty in case late payment of bill or outstandings
पेटीएम पोस्टपेड सेवा कैसे चालू करें
How to activate PayTM Postpaid service
- अपने मोबाइल पर Paytm एप Install करिए। अगर पहले से Install है तो Open करिए। पासवर्ड या पिन की मदद से इसे खोलिए। ध्यान दें: पहली बार Paytm एप Install करेंगे तो अपना मोबाइल नंबर रजिस्टर्ड करके password या PIN भी बनाना पड़ेगा।
- होमपेज पर थोड़ा नीचे जाएंगे तो Loans and Credit Cards section के तहत, Paytm Postpaid का बटन दिखता है। इस पर क्लिक कर दीजिए। (नीचे स्क्रीन शॉट में देखें)
- अपना PAN Card Number और जन्मतिथि (Date of Birth) डालें। पैन नंबर और जन्मतिथि वैरिफाई होने पर आपका नाम दिखेगा। नाम सही है तो अब Proceed के बटन पर क्लिक कर दीजिए।
- अप ये आपके PAN नंबर के हिसाब से यह चेक करेगा कि आपको यह सुविधा मिल सकती है कि नहीं। मुख्य रूप से यह आपके क्रेडिट स्कोर पर निर्भर करता है। अगर आपका पिछला रिकॉर्ड गड़बड़ है तो प्रक्रिया लिमिट ऑर्डर क्या है? आगे नहीं बढ़ेगी।
- अगर आपका फाइनेंशियल रिकॉर्ड ठीक है तो आपको 60,000 रुपए की Spend Limit मिल जाएगी। इसे जहां चाहें, पेमेंट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
कहां-कहां कर सकते हैं पेटीएम पोस्ट पेड सेवा का इस्तेमाल
पेटीएम पोस्ट पेड सेवा का इस्तेमाल आप निम्ननलिखित प्रकार के खर्चो को निपटाने के लिए कर सकते हैं-
- दुकानों पर सामान खरीदने में: देश भर में 5 लाख से अधिक दुकानों व स्टोरों पर पेटीएम से भुगतान लेने की सुविधा मौजूद है। दुकान के सामने लगे पेटीएम बारकोड या QR Code को स्कैन करके आप पेमेंट कर सकते हैं।
- रिचार्ज और बिलों का भुगतान: आप घरेलू सुविधाओं और सेवाओं के बिलों का भुगतान इससे कर सकते हैं। जैसे कि, बिजली का बिल, पानी का बिल, डाटा कार्ड, केबल टीवी, फास्टैग, मकान किराया, स्कूल की फीस, मेट्रो, टोल टैक्स वगैरह।
- यात्रा और टूर बुकिंग: यात्रा या टूर पर जाने के लिए बस, ट्रेन, हवाई जहाज वगैरह के टिकट बुक कर सकते हैं। यात्रा के दौरान ठहरने व भोजन वगैरह के लिए, होटल, रेस्टोरेंट वगैरह का बिल चुका सकते हैं। टैक्सी सेवा बुक कर सकते हैं।
- ऑनलाइन शॉपिंग: PayTM की इस सेवा की मदद से पेटीएम मॉल, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, Zomato, Myntra, LensKart वगैरह E-commerce साइटों पर सामानों की ऑनलाइन खरीद कर सकते हैं।
- पेट्रोल पंप या फिलिंग स्टेशन पर: आप अपने या किसी परिचित के वाहन में पेट्रोल, डीजल या CNG भरवाने के लिए भी PayTM Postpaid Service का इस्तेमाल कर सकते हैं।
Paytm सर्विस के कस्टमर केयर हेल्पलाइन नंबर
पेटीएम की सेवाओं से संबंधित किसी तरह की समस्या होने पर, आप नीचे दिए गए नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। सप्ताह के सातों दिन और चौबीसों घंटे ( 24*7) इन नंबरों पर बात की जा सकती है। हिंदी या अंग्रेजी भाषा में इन पर बात की जा सकती है।
बैंकिंग लेन-देन, वॉलेट पा पेमेंट संबंधी मामलों के लिए | 0120-4456-456 |
पेटीएम मॉल (paytmmall.com) पर खरीदारी के लिए | 0120-4606060 |
ट्रैवलिंग और होटल बुकिंग वगैरह के संबंध में | 0120-4880-880 |
ध्यान दें: ऊपर दिए गए हेल्पलाइन नंबरों पर संपर्क करने से पहले अपने पास order ID लेकर जरूर रख लें। कस्टमर सेवा पर शिकायत दर्ज कराने में इसकी जरूरत पड़ती है। हेल्पलाइन नंबर 24*7 चालू रहती है, लेकिन कंपनी के प्रतिनिधियों की ओर से आपसे सुबह 10 बजे से रात 8 बजे के बीच ही संपर्क किया जाता है।
तो दोस्तों ये थी PayTM PostPaid Service के बारे में हिंदी में जानकारी। रुपयों-पैसों से जुड़ी अन्य उपयोगी जानकारियों के लिए देखें हमारे लेख-
लिमिट ऑर्डर क्या है?
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- Subscribers - NPS Regular
- Aggregators
- NLCC
Toll Free Number -1800-110-069 of Atal Pension Yojana Submission of FATCA Self Declaration
1. राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली क्या है?
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) एक पेंशन सह निवेश योजना है जिसे भारत सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को वृद्धावस्था सुरक्षा प्रदान करने के लिए शुरू किया गया है। यह योजना सुरक्षित और विनियमित बाजार आधारित रिर्टन के जरिए प्रभावशाली रूप से आपकी सेवानिवृत्ति की योजना बनाने हेतु एक आकर्षक दीर्घकालिक बचत मार्ग से प्रारंभ होती है। इस योजना का विनियमन पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) द्वारा किया जाता है। पीएफआरडीए द्वारा स्थापित राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली न्यास (NPS Trust) एनपीएस के अंतर्गत सभी आस्तियों का पंजीकृत मालिक है।
2. एनपीएस के अंतर्गत कौन-कौन से विभिन्न सेक्टर हैं?
एनपीएस को व्यापक रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है और इसके अतिरिक्त इसे निम्नलिखित विभिन्न सेक्टरों में विभक्त किया जा सकता है :
- केन्द्र सरकार:
केन्द्र सरकार ने 1 जनवरी, 2004 से (सशस्त्र बलों को छोड़कर) राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की शुरूआत की थी। केन्द्रीय स्वायत्त निकायों के सभी कर्मचारी जिनकी नियुक्ति उपरोक्त तिथि या उसके बाद हुई हो, एनपीएस के सरकारी सेक्टर के तहत अनिवार्य रूप से कवर हैं। केन्द्र सरकार/ कैब के कर्मचारी पेंशन हेतु मासिक वेतन में से अंशदान करते हैं और नियोक्ता द्वारा समान अंशदान किया जाता है। - राज्या सरकार:
केन्द्र सरकार के बाद, विभिन्न राज्य सरकारों ने इस अवसंरचना को अपनाया है और विभिन्न तिथियों से एनपीएस के कार्यान्वयन को प्रभावी किया है। यदि संबंधित राज्य सरकार/केन्द्र शासित प्रदेश ने एनपीएस अवसंरचना को अपना लिया है और इसका कार्यान्वयन आंरभ कर दिया है तो राज्य स्वायत्त निकाय (एसएबी) भी एनपीएस को अपना सकते हैं। राज्य सरकार/एसएबी कर्मचारी भी पेंशन हेतु नियोक्ता के समान अंशदान के साथ मासिक वेतन में अंशदान करते हैं।
2. निजी सेक्टसर (गैर-सरकारी सेक्टरर) :
- कॉरपोरेट:
एनपीएस कॉरपोरेट सेक्टर मॉडल विभिन्न संगठनोंको उनके नियोक्ता-कर्मचारी संबंधोंकी परिधिके भीतर एक संगठित संस्थाके रूपमें अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएसको अपनाने हेतु उपयुक्त बनाने के लिए एनपीएस का एक अनुकूलित संस्करण है - ऑल सिटिजन ऑफ इंडिया:
ऐसा कोईभी व्यक्तिजो उपरोक्त किसीभी सेक्टरके अंतर्गत कवर नहीं है 1 मई, 2009 से ऑल सिटिजन ऑफ इंडिया सेक्टरके अंतर्गत एनपीएस अवसंरचनामें शामिल हो सकता है।
3. मुझे एनपीएस खाता क्यों खुलवाना चाहिए?
अन्य उपलब्ध पेंशन प्रोडक्ट की तुलना में एनपीएस खाता खुलवाने के उसके स्वयं के लाभ हैं। निम्नलिखित विशेषताएं एनपीएस को अन्य उत्पादों से अलग बनाती हैं:
- कमलागत प्रोडक्ट
- व्यक्तियों,कर्मचारियों और नियोक्ताओं के लिए करलाभ
- बाजार आधारित आकर्षक रिर्टन
- सरलतासे संवहनीय
- अनुभवी पेंशन फंड द्वारा व्यावसायिक रूपसे प्रबंधित
- संसदके अधिनियम द्वारा स्थापित एक विनियामक पीएफआरडीए द्वारा विनियमित
4. एनपीएस में कौन शामिल हो सकता है?
भारत का कोई भी नागरिक (आवासीय और प्रवासी दोनों) जिसकी आयु 18 से 65 वर्ष की आयु (एनपीएस आवेदन जमा कराने की तिथि के अनुसार) है, एनपीएस में शामिल हो सकता है।
5. क्या कोई अनिवासी भारतीय एनपीएस में शामिल हो सकता है?
जी हां, एक अनिवासी भारतीय एनपीएस खाता खोल सकता है। एनआरआई द्वारा किया गया अंशदान समय-समय पर आरबीआई और फेमा द्वारा यथानिर्धारित विनियामक अपेक्षाओं के अध्यधीन होता है। हालांकि, ओसीआई (ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया) और पीआईओ (पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजन) कार्ड धारक और HUF एनपीएस खाता खोलने हेतु पात्र नहीं हैं।
6. क्या मैं बहु(मल्टीपल) एनपीएस खाते खोल सकता हूं।
नहीं, एनपीएस के अंतर्गत व्यक्ति को बहु एनपीएस खाते खोलने की अनुमति नहीं है। हालांकि, कोई व्यक्ति एक खाता एनपीएस में और दूसरा अन्य खाता अटल पेंशन योजना में खोल सकता है।
7. क्या मैं मेरी पत्नी/पति, बच्चे, रिश्तेदार आदि के साथ संयुक्त रूप से एनपीएस खाता खोल सकता हूं?
नहीं, एनपीएस खाता केवल व्यक्तिरूप से खोला जा सकता है और इसे HUF के लिए या उसकी ओर से संयुक्त रूप से खोला या संचालित नहीं किया जा सकता है।
8. एनपीएस किस प्रकार कार्य करती है?
एनपीएस के अंतर्गत सफलतापूर्वक नामांकन होने पर, अभिदाता को एक स्थायी सेवानिवृत्ति खाता संख्या (प्रान) आबंटित किया जाता है। प्रान सृजित होने पर, एनएसडीएल-सीआरए (केन्द्रीय रिकॉर्ड कीपिंग एजेंसी) द्वारा अभिदाता के पंजीकृत ई-मेल आईडी और मोबाईल नंबर पर एक ई-मेल अलर्ट साथ ही साथ एसएमएस अलर्ट भेजा जाता है। अभिदाता सेवानिवृत्ति हेतु निधि जमा करने के लिए कामकाजी जीवन के दौरान एनपीएस में आवधिक (periodically)और नियमित अंशदान करते हैं।
सेवानिवृत्ति अथवा योजना से निकास होने पर, अभिदाता को इस शर्त के साथ निधि उपलब्ध कराई जाती है कि निधि का कुछ भाग को वार्षिकी में निवेश किया जाएगा ताकि योजना से निकास अथवा सेवानिवृत्ति के बाद उसे एक मासिक पेंशन प्रदान की जा सके।
केंद्रीय सूचना आयोग
आयोग को आर.टी.आई. एक्ट की धारा 19(3) के अंतर्गत दाखिल एक अपील का न्यायनिर्णयन करने और वह अपेक्षित सूचना, जब वह केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) या प्रथम अपीलीय अधिकारी के स्तर से प्रदान नहीं की गई है, को प्रदान करने का आदेश जारी करने की शक्तियाँ हैं।
अपील
धारा 19(1) ऐसा कोई व्यक्ति, जिसे धारा 7 की उपधारा (1) या उपधारा (3) के खंड (क) में विनिर्दिष्ट समय के भीतर कोई विनिश्चय प्राप्त नहीं हुआ है या जो, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के किसी विनिश्चय से व्यथित है, उस अवधि की समाप्ति से या ऐसे किसी विनिश्चय की प्राप्ति से तीस दिन के भीतर ऐसे अधिकारी को अपील कर सकेगा, जो प्रत्येक लोक प्राधिकरण में, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी की पंक्ति से ज्येष्ठ पंक्ति का है:
परन्तु ऐसा अधिकारी, तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने में पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।
(2) जहां अपील धारा 11 के अधीन, यथास्थिति, किसी केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पर व्यक्ति की सूचना प्रकट करने के लिए किए गए किसी आदेश के विरुद्ध की जाती है वहां सम्बंधित पर व्यक्ति द्वारा अपील, उस आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर की जाएगी।
(3) उपधारा (1) के अधीन विनिश्चय के विरुद्ध दूसरी अपील उस तारीख से, जिसको विनिश्चय किया जाना चाहिए था या वास्तव में प्राप्त किया गया लिमिट ऑर्डर क्या है? था, नब्बे दिन के भीतर केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को होगी:
परन्तु, यथास्थिति, केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।
(4)यदि, यथास्थिति, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का विनिश्चय, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पर व्यक्ति की सूचना से सम्बंधित है तो, यथास्थिति, केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग उस पर व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा।
(5) अपील संबंधी किन्हीं कार्यवाहियों में यह साबित करने का भार कि अनुरोध को अस्वीकार करना न्यायोचित था, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी पर, जिसने अनुरोध से इंकार किया था, होगा।
(6) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी अपील का निपटारा, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, अपील की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर या ऐसी विस्तारित अवधि के भीतर, जो उसके फाइल किए जाने की तारीख से कुल पैंतालीस दिन से अधिक न हो, किया जाएगा।
(7)यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का विनिश्चय आबद्धकर होगा।
(8)अपने विनिश्चय में, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को निम्नलिखित की शक्ति है—
(क) लोक प्राधिकरण से ऐसे उपाय करने की अपेक्षा करना, जो इस अधिनियम के उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो, जिनके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं:--
(i) सूचना तक पहुंच उपलब्ध कराना, यदि विशिष्ट प्ररूप में ऐसा अनुरोध किया गया है;
(ii) यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना;
(iii) कतिपय सूचना या सूचना के प्रवर्गों को प्रकाशित करना;
(iv) अभिलेखों के अनुरक्षण, प्रबंध और विनाश से सम्बंधित अपनी पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना;
(v) अपने अधिकारीयों के लिए सूचना के अधिकार के संबंध में प्रशिक्षण के उपबंध को बढ़ाना;
(vi) धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अनुसरण में अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट उपलब्ध कराना;
(ख) लोक प्राधिकारी से शिकायतकर्ता को, उसके द्वारा सहन की गई किसी हानी या अन्य नुकसान के लिए प्रतिपूरित करने की अपेक्षा करना;
(ग) इस अधिनियम के अधीन उपबंधित शास्तियों में से कोई शास्ति अधिरोपित करना;
(घ) आवेदन को नामंजूर करना।
(9)यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकारी को, अपने विनिश्चय की, जिसके अंतर्गत अपील का कोई अधिकार भी है, सूचना देगा।
(10)यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, अपील का विनिश्चय ऐसी प्रक्रिया के अनुसार करेगा, जो विहित की जाए।
जानिए स्टे ऑर्डर क्या होता है
स्टे ऑर्डर एक प्रसिद्ध शब्द है जहां कहीं किसी अचल संपत्ति से जुड़े विवाद को लेकर बात होती है वहां स्टे ऑर्डर शब्द भी बातचीत के दौरान इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए कहा गया है कि स्टे ऑर्डर शब्द अत्यंत प्रसिद्ध शब्द है।
इस आलेख के अंतर्गत स्टे ऑर्डर क्या होता है और यह किस कानून के अंतर्गत दिया जाता है तथा इस ऑर्डर का पालन कैसे किया जाता है यह सभी जानकारियां प्रस्तुत की जा रही है।
स्टे ऑर्डर एक आम बोलचाल का शब्द है। कानूनी रूप से इसका नाम अस्थाई निषेधाज्ञा या फिर स्थगन आदेश है। यह न्यायालय का दिया हुआ है ऐसा आदेश होता है जो किसी कार्यवाही को त्वरित रूप से रोक देता है और ऐसा आदेश एक अनिश्चित समय के लिए होता है परंतु यदि न्यायाधीश द्वारा ऐसे आदेश को दिए जाते समय अनिश्चित समय का उल्लेख नहीं किया गया है तब यह आदेश 6 माह के लिए होता है।
कभी-कभी अचल संपत्ति के विवाद में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है जब किसी पक्षकार के हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा हो तब न्यायालय मामले में हस्तक्षेप कर अस्थाई निषेधाज्ञा आदेश पारित कर देता है।
जैसे कि किसी व्यक्ति के खेत पर किसी कानूनी प्रक्रिया को बता कर कब्जा किया जा रहा है तब वह व्यक्ति उस कब्जे के विरुद्ध प्राथमिक स्तर पर न्यायालय में कोई वाद संस्थित करता है, ऐसे वाद को संस्थित किए जाने के बाद यदि संबंधित पक्षकार खेत पर अवैध कब्जा करने आ खड़ा हुआ है तब पीड़ित पक्षकार उच्चतर स्तर के न्यायालय में जहां जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय भी शामिल है में एसी अस्थाई निषेधाज्ञा के लिए परिवाद प्रस्तुत कर सकता है तथा न्यायालय से निवेदन कर सकता है कि उसके मामले में स्थगन आदेश पारित किया जाए।
किस कानून के तहत:-
इस प्रकार का स्टे ऑर्डर सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 और नियम 1 और 2 के तहत प्रस्तुत किया जाता है। इस आदेश 39 के अंतर्गत इस बात का उल्लेख किया गया है कि यदि कोई पहले से चल रहे मुकदमे में या फिर नए लाए गए मुकदमे में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है कि जिस व्यक्ति के पास कब्जा है उस व्यक्ति से कब्जा छीना जा रहा है अवैध कब्जा प्राप्त किया जा रहा है या उसकी भूमि में घुसपैठ की जा रही है तब वह व्यक्ति जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों में ही इस प्रकार के स्टे ऑर्डर लिमिट ऑर्डर क्या है? के लिए एप्लीकेशन लगा सकता है।
न्यायालय इस एप्लीकेशन के प्राप्त होने पर मामले की गंभीरता को देख कर शीघ्र से शीघ्र सुनवाई करती है। यदि कोई मामला अत्यधिक गंभीर है तो उस मामले में 102 दिन के भीतर ही सुनवाई हो जाती है पर कोई मामला अधिक गंभीर नहीं है तब ऐसी सुनवाई 15 से 20 दिनों के भीतर भी की जाती है।
दोनों ही पक्षकार को न्यायालय में उपस्थित होकर एक दूसरे के तथ्यों से न्यायालय को अवगत करना होता है। कभी-कभी न्यायालय केवल पीड़ित पक्षकार को ही सुनती है और दूसरे पक्ष लकार को एक्स पार्टी कर देती है और इस प्रकार एक्स पार्टी करके मामले में आदेश पारित कर दिया जाता है।
दोनों ही पक्षकार को सुनने के बाद न्यायालय कब्जे से संबंधित सबूतों को देखती है, वाद से संबंधित सबूतों को देखती है उसके बाद अपना आदेश पारित करती है। यह आवश्यक नहीं है कि न्यायालय हर मामले में ही स्टे ऑर्डर प्रदान कर देता है जहां उसे लगता है कि निषेधाज्ञा प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है वहां न्यायालय किसी प्रकार का स्टे ऑर्डर प्रदान नहीं करता है।
मिजोरम राज्य व अन्य बनाम मेसर्स पूजा फर्नीचर प्रायवेट लिमिटेड व अन्य के मामले में स्टे ऑर्डर से संबंधित कानून को और अधिक विस्तार पूर्वक समझाते हुए कहा है कि:-
किसी भी कोर्ट को स्टे देते समय तीन पहलुओं पर विचार करना चाहिए, जैसे
(2) अपूरणीय क्षति या चोट।
(3) प्रथम दृष्टया मामला।
जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने मिजोरम सरकार द्वारा हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि चूंकि रिट पिटिशन का अंतिम परिणाम लंबित है, इसलिए दिनांक 04/06/19 को रुचि अभिव्यक्त कर चुके पेपर लॉटरी ड्रॉ के सभी अनुसरणकर्ताओं को स्थगित रखा जाए।
स्टे ऑर्डर लेने के लिए भी सबूत प्रस्तुत करना होते हैं और न्यायालय में यह साबित करना होता है कि यदि किसी मकान पर किसी व्यक्ति द्वारा कब्जा किया जा रहा है तो ऐसा कब्जा अवैध है और जिस व्यक्ति ने स्टे ऑर्डर के लिए निवेदन किया है उस व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पास पूर्व से मकान पर कब्जा है और किस नाते उसका कब्जा वैध है।
जैसे कि किसी व्यक्ति के पास में कब्जा किसी भी प्रकार से हो सकता है, मालिक की तौर पर कब्जा हो सकता है, किराएदार के तौर पर कब्जा हो सकता है, देखरेख के नाते कब्जा हो सकता है, पावर ऑफ अटॉर्नी के वास्ते कब्जा हो सकता है तब उसके कब्जेदार को यह साबित करना होता है कि उसका कब्जा किस नाते हैं और कब से वह उस संपत्ति पर है।
यदि यह दोनों बातें न्यायालय में साबित कर दी जाती है तो तीसरा सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि क्या इस विवाद से संबंधित कोई मुकदमा किसी न्यायालय में चल रहा है या फिर कोई नया मुकदमा लाया गया है। इन दो ही परिस्थितियों में स्टे ऑर्डर पारित किया जाता है जब कोई मुकदमा किसी न्यायालय में चल रहा हो या फिर कोई नया मुकदमा न्यायालय में लाया गया हो।
एक उदाहरण के माध्यम से स्टेट ऑर्डर को यूं समझा जा सकता है:-
जैसे किसी मंदिर की जमीन पर किसी पुजारी का कब्जा है। पुजारी का कब्जा पिछले 75 वर्षों से है उस पुजारी का यह दावा है कि वह जगह मंदिर की नहीं है बल्कि मंदिर की देखरेख करने के बदले किसी समय के शासक द्वारा वह जमीन उस पुजारी के पुरखों को दी गई थी। इस प्रकार से वह जमीन पुजारी के पुरखों का मेहनताना है जो उसे मंदिर की देखरेख करने के बदले में मिला है।
अब यदि सरकार किसी कानून के माध्यम से मंदिर को अपने कब्जे में ले लेती है और उस जगह पर जिस जगह पर मंदिर के पुजारी का कब्जा है यह दावा करती है कि जगह भी मंदिर की है इसलिए हम जगह पर भी कब्जा लेंगे और अपने अधिकारियों को भेज कर मंदिर की उस जगह पर भी कब्जा लेने के लिए खड़ा कर देती है। ऐसी स्थिति में पुजारी को पहले वाद संस्थित करना होग यह वाद पुजारी अपने कब्जे और अपने हक के लिए प्रस्तुत करेगा।
इस वाद को प्रस्तुत करने के बाद वह न्यायालय से स्टे ऑर्डर प्राप्त कर सकता है, यहां ध्यान यह देना होगा कि स्टे ऑर्डर किसी भी ऐसे मामले में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है जो केवल स्टे ऑर्डर के लिए ही प्रस्तुत किया गया है, न्यायालय में जो मुकदमे चल रहे होते हैं उनके भीतर स्टे ऑर्डर प्रदान किया जाता है।
स्टे ऑर्डर का पालन:-
न्यायालय जब कभी किसी मामले में स्टे ऑर्डर देता है तब इस प्रकार के ऑर्डर का पालन करना पक्षकारो पर बाध्यकारी हो जाता है। किसी भी स्थिति में ऐसे ऑर्डर का पालन करना ही होता है। न्यायालय ने यदि किसी मामले में यह स्टर्डर दिया गया है कि भूमि की स्थिति ज्यों की त्यों रहने दी जाए तब भी उसके आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है और घुसपैठ की जा रही है बदलाव किया जा रहा है तब सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 39 नियम 1(A) के अंतर्गत न्यायालय आदेश का पालन नहीं करने वाले पक्षकार की संपत्ति को कुर्क भी कर सकता है तथा उसकी संपत्ति को बेच कर पीड़ित पक्षकार को हुई नुकसानी की भरपाई भी करवा सकता है तथा 3 महीने का सिविल कारागार भी दे सकता है।
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