पीला रंग वह रंग है जो कि मानवीय आँख के शंकुओं में लम्बे एवं मध्यमक, दोनों तरंग दैर्ध्य वालों को प्रभावित करता है। यह वह रंग है, जिसमें लाल एवं हरा रंग बाहुल्य में एवं नीला वर्ण न्यून तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है हो। इस की आवृति लगभग 5.07 - 5.19 तथा तरंग दैर्ध्य 5780 Å से 5920 Å [2] है।

प्रकाश तरंगों का विवर्तन क्या है ?

ध्वनि तरंगों के रूप में आगे बढ़ती है। जब ध्वनि के मार्ग में कोई तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है अवरोध (Obstacle) आ जाता है, तो वह मुड़कर चलने लगती है। यही कारण है, कि कमरे के बाहर की आवाज कमरे के अन्दर चारों ओर फैलकर वहां बैठे प्रत्येक व्यक्ति को सुनाई देने लगती है। किनारों पर ध्वनि तरंगों का मुड़ना ध्वनि का विवर्तन कहलाता है।ध्वनि तरंगों की तरंग-दैर्ध्य अवरोध के आकार की कोटि की होती है, अतः ध्वनि का विवर्तन आसानी से ज्ञात हो जाता है।

विवर्तन, प्रत्येक प्रकार की तरंग का एक गुण होता है। प्रकाश भी एक तरंग है। अत: उसमें भी विवर्तन का गुण होता है। सामान्य परिस्थितियों में प्रकाश का विवर्तन दृष्टिगोचर नहीं होता। किन्तु जब प्रकाश किसी छोटे छिद्र (स्लिट) से गुजरता है या उसके मार्ग में कोई बहुत पतली वस्तु (अवरोध), जैसे—बाल, तार, इत्यादि आ जाती है, तो प्रकाश किनारे पर कुछ मुड़ जाता है जिससे प्रकाश रंगीन दिखाई देने लगता है तथा छाया के किनारे तीक्ष्ण (Sharp) नहीं होते हैं।

प्रकाश का विवर्तन के अनुप्रयोग

प्रकाश के विवर्तन के कारण ही दूरदर्शी में तारों के प्रतिबिम्ब तीक्ष्ण बिन्दुओं की तरह दिखाई न देकर अस्पष्ट धब्बों की तरह दिखाई देते हैं।

जब आप किसी ग्रामोफोनर रिकार्ड या कॉम्पैक्ट डिस्क को किसी कोण से देखते हैं, तो वह इन्द्रधनुषी दिखता है। इसका कारण यह है, कि जब श्वेत प्रकाश की किरण डिस्क के विभिन्न उभारों से होकर समानान्तर गुजरती है, तो वे उभार प्रिज्म की तरह कार्य करते हैं और प्रकाश की श्वेत किरणें सात वर्गों में टूट जाती है। पुनः इन विक्षेपित किरणों का तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है विवर्तन व संचरण होता है, तब वे हमारी आंख तक पहुंचती हैं।

दिष्टकरण को परिभाषित कीजिए।
पूर्ण तरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र बनाइए।
दिए गये ऊर्जा बैंड चित्र से सम्बंधित अर्द्धचालक है :
n -प्रकार का अर्द्धचालक, p -प्रकार का अर्द्धचालक या नैज अर्द्धचालक ।

नमस्कार दोस्तों दिया गया प्रश्न है ढक्कन को परिभाषित कीजिए पूर्ण तरंग दिष्टकारी का परिपथ बनाइए दिए गए ऊर्जा बैंड से चिंतित से संबंध चालक है तथा एंड प्रकार का अर्थ चालक भी टाइप कर चालक या ना कर चालक प्रश्न दिए गए हैं पहला प्रश्न पूछा गया इस कारण बताइए और कुंदन बिहारी का पत्नी का चित्र बनाइए दूसरा प्रश्न ऊर्जा बैंड से क्या करना हमें पता लगाना है कि यह किस टाइप का अर्थ चालक है ठीक है क्या होता है दोस्तों हमारे पास में प्रत्यावर्ती धारा होती है वह कैसी होती है समय के साथ में बदलने वाली धारा होती है समय में परिवर्तन करती है अपने आया और कला में जान क्या होता है प्रत्यावर्ती धारा को कैसे करना होता है मैं डिस्ट्रिक्ट में परिवर्तित कर धारा में परिवर्तन करने की प्रक्रिया होती है उसे जिसके कारण कहलाते हैं ठीक है

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पूर्ण तरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है बनाइए।
दिए गये ऊर्जा बैंड चित्र से सम्बंधित अर्द्धचालक है :
n -प्रकार का अर्द्धचालक, p -प्रकार का अर्द्धचालक या नैज अर्द्धचालक ।

नमस्कार दोस्तों दिया गया प्रश्न है ढक्कन को परिभाषित कीजिए पूर्ण तरंग दिष्टकारी का परिपथ बनाइए दिए गए ऊर्जा बैंड से चिंतित से संबंध चालक है तथा एंड प्रकार का अर्थ चालक भी टाइप कर चालक या ना कर चालक प्रश्न दिए गए हैं पहला प्रश्न पूछा गया इस कारण बताइए और कुंदन बिहारी का पत्नी का चित्र बनाइए दूसरा प्रश्न ऊर्जा बैंड से क्या करना हमें पता लगाना है कि यह किस टाइप का अर्थ चालक है ठीक है क्या होता है दोस्तों हमारे पास में प्रत्यावर्ती धारा होती है वह कैसी होती है समय के साथ में बदलने वाली धारा होती है समय में परिवर्तन करती है अपने आया और कला में जान क्या तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है होता है प्रत्यावर्ती धारा को कैसे करना होता है मैं डिस्ट्रिक्ट में परिवर्तित कर धारा में परिवर्तन करने की प्रक्रिया होती है उसे जिसके कारण कहलाते हैं ठीक है

Ocean Coast Topography | सागरीय तटीय स्थलाकृतियां

सागरीय तटवर्ती क्षेत्रों में सागरीय तरंगों, धाराओं, ज्वार इत्यादि समुद्री जल की गतियों के कारण तटवर्ती क्षेत्रों में अपरदन का कार्य होता है। फलस्वरुप तटवर्ती क्षेत्र में अपरदनात्मक स्थलाकृतियों का विकास होता है। लोटती हुए तरंगों द्वारा तटवर्ती क्षेत्र में अपरदित पदार्थों का तट से समुद्र की ओर निक्षेपित करने की क्रिया होती है, जिससे निक्षेपात्मक स्थलाकृतियों का विकास होता है। स्थलाकृतियों के विकास में सर्वाधिक योगदान समुद्री तरंगों का होता है। यें तरंगे तट से टकराती हैं और अध: प्रवाह के रूप में वापस लौटती है जो स्थलाकृतियों के विकास के लिए मुख्यत: उत्तरदायी है। वेलांचली धारा और ज्वार का प्रभाव भी स्थलाकृतियों के विकास पर पड़ता है।

स्पष्टत: अपरदन के अन्य दूतों के सामान्य ही समुद्री तरंग भी एक प्रमुख दूत है और सामान्य अपरदनचक्र की क्रिया तटवर्ती प्रदेशों में भी घटित होती है।

अपरदन से निर्मित स्थलाकृति या निम्नलिखित हैं।

  1. तटीय भृगु – तटीय क्षेत्र में समुद्री तरंगों के द्वारा तटीय चट्टानों पर प्रहार किया जाता है, जिससे तीव्र ढाल वाले तत्वों का निर्माण होता है, इसे तटीय भृगु कहते हैं। भृगु के आधार पर तरंगों के द्वारा और अपरदन की क्रिया से गड्ढे या गर्त का निर्माण होता है जिसे खांचा या दांता कहते हैं। जब खांचा अधिक विस्तृत हो जाता है तो भृगू लटकता हुआ दिखाई देता है, जिसे लटकती भृगु कहते हैं।
  2. तरंग धार्षित वेदिका – तरंगों के द्वारा खांचे के अधिक विस्तार हो जाने पर लटकती हुई भृगु को टूटकर नीचे गिरने लगती है। फलस्वरुप पुनः खड़े ढाल वाले भृगु का निर्माण होता है। तरंगों द्वारा पुनः खांचे का निर्माण किया जाता है और यह प्रक्रिया चलती रहती है। इसके फलस्वरुप आधार के चट्टानों का निरंतर स्थल की ओर विस्तार होता चला जाता है। जिससे निर्मित चट्टाने चबूतरे के क्षेत्र को तरंग घर्षित वेदिका कहते हैं।
  3. लघु निवेशिका – यह तटवर्ती क्षेत्र में कठोर और मुलायम चट्टाने क्रमश: स्थित हो तो कठोर चट्टानों के पीछे स्थित मुलायम चट्टानों का तरंगों द्वारा अपरदन हो जाता है। फलस्वरुप अंडाकार गर्त का विकास होता है, जिसमें समुद्र का जल प्रवेश कर जाता है, इसे लघु निवेशिकों कहते हैं। कठोर चट्टानों के अवशेष छोटे द्वीप के रूप में शेष रह जाते हैं, क्योंकि इसका अपरदन नहीं होता है।
  4. कंदरा मेहराब और बात छिद्र – जब स्थल से कोई चट्टानी क्षेत्र समुद्र की ओर निकला होता है तो ऐसे में समुद्री तरंगों के द्वारा की गई अपरदन क्रिया के फलस्वरुप खोखली आकृति का निर्माण होता है, जिसे कंदरा कहते हैं। जब कंदरा में समुद्री जल आर-पार प्रभावित होने लगता है तो कन्दरा की छत पुल की तरह दिखाई देता है जिसे मेहराब कहते हैं। जब मेहराब की छत टूट जाती है तो चट्टाने स्तंभ की तरह खड़ी रह जाती हैं, जिसे स्टैक या स्कैरी कहते हैं।

निक्षेप से निर्मित स्थलाकृतियां निम्न है।

  1. पुलिन एवं कस्पपुलिन – यह एक निक्षेपात्मक स्थलाकृति है जिसका विकास स्थलीय तटीय पदार्थ का समुद्र की ओर नीचे होने से होता है जब पुलिन का विस्तार समुद्र की ओर कटक के रूप में लंबत हो जाता है तो इसे कस्प पुलिन कहते हैं।
  2. रोधिका – रोधिका बांध की तरह निक्षेपित स्थलाकृति है जिसका विकास तट के करीब या तट से दूर तट के समानांतर होता है। तट से दूर स्थित रोधिका को अपतट रोधिका का कहते हैं।
  3. स्पीट, हुक, मिश्रित, हुक – समुद्र के जल की ओर निक्षेप की क्रिया इस प्रकार हो कि समुद्र में जिह्य की तरह निक्षेप हो जाए तो इसे स्पीड कहते हैं। यह लंबा संकरा होता है जब स्पीड तट की ओर मुड़ जाता है तो इसे हुक कहते हैं। एक हुक में जब कोई हुक विकसित हो जाता है तो उसे मिश्रित हुक कहते हैं।
  4. लुप एवं लुप रोधिका – जल स्पीड मुड़कर तट से लगभग मिल जाता है, तो इसे लुप कहते हैं। जब किसी द्वीप के चारों ओर लुप का विकास हो तो इसे लुप रोधिका कहते हैं।
  5. संयोजन रोधिका – दो स्थलीय भाग को जोड़ने वाली रोधिका को संयोजक राधिका कहते हैं। तटीय भाग को द्वीप से जोड़ने वाली राधिका टॉमबोलो कहलाती है।
  6. उभयाग्र रोधिका – संलग्न तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है रोधिकाओ को उभयाग्र राधिका कहते हैं, इसे डंगनेस भी कहा जाता है।

रंगों का नामकरण

रंग-बिरंगे पंख

रंग अथवा वर्ण का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं।

हर सभ्यता ने रंग को अपने लिहाज़ से गढ़ा है लेकिन इत्तेफाक से किसी ने भी ज़्यादा रंगों का नामकरण नहीं किया। ज़्यादातर भाषाओं में रंगों को दो ही तरह से बांटा गया है। पहला सफ़ेद यानी हल्का और दूसरा काला यानी चटक अंदाज़ लिए हुए।

  • अरस्तु ने चौथी शताब्दी के ईसापूर्व में नीले और पीले की गिनती प्रारंभिक रंगों में तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है की। इसकी तुलना प्राकृतिक चीज़ों से की गई जैसे सूरज-चांद, स्त्री-पुरुष, फैलना-सिकुड़ना, दिन-रात, आदि। यह तक़रीबन दो हज़ार वर्षों तक प्रभावी रहा।
  • 17-18वीं शताब्दी में न्यूटन के सिद्धांत ने इसे सामान्य रंगों में बदल दिया। 1672 में न्यूटन ने रंगों पर अपना पहला पेपर प्रस्तुत किया था जो बहुत विवादों में रहा।
  • गोथे ने न्यूटन के सिद्धांत को पूरी तरह नकारते हुए थ्योरी ऑफ़ कलर्स (Theory Of Colours) नामक किताब लिखी। गोथे के सिद्धांत अरस्तु से मिलते हैं। गोथे ने कहा कि गहरे अंधेरे में से सबसे पहले नीला रंग निकलता है, यह गहरेपन को दर्शाता है। वहीं उगते हुए सूरज में से पीला रंग सबसे पहले निकलता है जो हल्के रंगों का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • 19 वीं शताब्दी में कलर थेरेपी का प्रभाव कम हुआ लेकिन 20वीं शताब्दी में यह नए स्वरूप में पैदा हुआ। आज के तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है कई डॉक्टर कलर थेरेपी को इलाज का बढ़िया माध्यम मानकर इसका इस्तेमाल करते हैं।
  • रंग विशेषज्ञ मानते हैं कि हमें प्रकृति से सान्निध्य बनाते हुए रंगों को कलर थेरेपी के बजाय ज़िन्दगी के तौर पर अपनाना चाहिए। रंगों को समझने में सबसे बड़ा योगदान उन लोगों ने किया जो विज्ञान, गणित, तत्त्व विज्ञान और धर्मशास्त्र के अनुसार काम करते थे। [1]
  • ऑस्टवाल्ड नामक वैज्ञानिक ने आठ आदर्श रंगों को विशेष क्रम से एक क्रम में संयोजित किया। इस चक्र को ऑस्टवाल्ड वर्ण चक्र कहते हैं। इस चक्र में प्रदर्शित किये गये आठ आदर्श रंगों को निम्न विशेष क्रम में प्रदर्शित किया जा सकता है-

बैंगनी

बैंगनी रंग एक सब्जी़ बैंगन के नाम पर रखा हुआ नाम है। अँग्रेजी़ में इसे वॉय्लेट (voilet) कहते हैं, जो कि इसी नाम के फूल से रखा है। इसकी तरंग दैर्ध्य 3800 Å से 4460 Å [5] होती है। जिसके बाद इंडिगो रंग होता है। यह प्रत्यक्ष वर्णचक्र के ऊपरी छोर पर स्थित होता है। यह वर्णक्रम के नीला एवं हरा रंग के बीच में लगभग 380-450 nm के तरंग दैर्ध्य में मिलता है।

नीला रंग वह है, जिसे प्रकाश के प्रत्यक्ष वर्णक्रम की 4460 Å से 4640 Å [6] की तरंग दैर्घ्य तथा 6.47 - 6.73 की आवृति द्वारा दृश्य किया जाता है।

आसमानी को नीलमणी भी कहा जाता है। आसमानी रंग द्वितीयक रंग की श्रेणी में आता है। आसमानी रंग को ठंड़ा रंग माना जाता है। आसमान के रंग का होने के कारण इसे आसमानी रंग कहा जाता है।

दुनिया भर में जितने भी रंग मिलते हैं, उसे हम मुख्यत: दो वर्गों में बाँट सकते हैं।

  • रंगीन वर्ण में लाल, पीला, नीला, बैंगनी इत्यादि रंग आते हैं।
  • जबकि बदरंग वर्ग में काला, सफ़ेद और कई छवियों के स्लेटी रंग सम्मिलित हैं।

स्लेटी रंगों की अनेकानेक छवियाँ हैं। कोई स्लेटी सफ़ेद के निकट होता है तो कोई सफ़ेद से अत्यन्त दूर होकर काले रंग के क़रीब आ जाता है। स्लेटी छवियों को काले और सफ़ेद के बीच एक श्रृंखला में भी श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। श्रृंखला को पैमाने का भी रूप दिया जा सकता तरंग चक्र सिद्धांत क्या है और इसका क्या अर्थ है है, जिसके केन्द्र का रंग काले और सफ़ेद के समान स्तर का स्लेटी होगा। काले रंग को शून्य संख्या देकर छवि को क्रमश: आगे का अंक प्रदान किया जा सकता है। इस प्रकार अधिकतम संख्या अंक सफ़ेद को दिया जाता हैं।

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